धर्मेंद्र : एक सपना, एक संघर्ष, एक अमर मुस्कान
गाँव की मिट्टी से सपनों की उड़ान तक
पंजाब के साहनेवाल कस्बे में जन्मे धर्मेंद्र का बचपन बिल्कुल साधारण था—खेतों की खुशबू, मिट्टी की सौंधी ऊर्जा और परिवार की उम्मीदें।
उन्हें अपने गाँव से बेहद प्रेम था, और यही प्रेम उनकी आत्मा का आधार बना। उनकी आँखों में एक सपना था—“पर्दे पर चमकना”—पर इतना बड़ा सपना किसी छोटे कस्बे में खुलकर सपने जैसा ही लगता था।
पर कवि हरिवंश राय बच्चन ने कहा है न कि “हर बड़ा सपना अक्सर छोटी जगहों की खामोशी में जन्म लेता है, और किसी बड़ी जगह पर साकार रूप लेता है।” बस इसी तरह से धर्मेंद्र की कहानी शुरू होती और आकार लेती है।
चुनौतियों की राह पर पहला कदम
गाँव से मुंबई की यात्रा आसान नहीं थी। जेब में थोड़े पैसे, दिल में हज़ार उम्मीदें और मन में यह विश्वास कि “कुछ बनकर ही लौटूँगा।” मुंबई जैसे विशाल शहर में संघर्ष उनकी परीक्षा था।
कई दफ़ा स्टूडियो के बाहर घंटों इंतज़ार—कभी अवसर नहीं, कभी पहचान नहीं। लेकिन धर्मेंद्र हार नहीं माने। उनके भीतर का हीरो पहले मन में पैदा हुआ, और फिर वह पर्दे पर उभरा।
इस बात पर मिर्ज़ा ग़ालिब का एक शेर याद आता है —
“हजारों ख्वाहिशें ऐसी कि हर ख्वाहिश पे दम निकले…
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले।”
पहला अवसर — सपने को पहला आकार
फिल्मफेयर टैलेंट कॉन्टेस्ट के माध्यम से धर्मेंद्र को पहला प्रवेश-द्वार मिला। यह वह क्षण था जिसने उनके सपने को रास्ता दिखाया। धीरे-धीरे छोटी भूमिकाएँ, फिर गंभीर किरदार, और धीरे-धीरे एक ऐसा चेहरा जिसे दर्शक हर भावनात्मक दृश्य में महसूस करने लगे।
धर्मेंद्र के अभिनय की खासियत :
धर्मेंद्र का अभिनय विविधताओं से भरा हुआ था। इसमें सादगी, ईमानदारी, भावनाओं की गहराई, संवादों की स्वाभाविकता आदि लक्षण प्रमुखता से दिखाई देते हैं।
संघर्ष से सितारों तक का सफर — “ही-मैन” का जन्म
1970-80 के दशक का भारत राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर संघर्ष का भारत था। आजादी के बाद आम आदमी के सपने प्रायः अधूरे रह गए, तो धीरे-धीरे आजादी से ही लोगों का मोहभंग होने लगा। अपनी समस्याओं के निराकरण हेतु एक महानायक की संकल्पना जागृत होने लगी। बस फिर क्या था? रुपहले पर्दे ने धरमजी के रूप में इसे साकार रूप देने का प्रयास शुरू कर दिया। आगे चलकर अमिताभ बच्चन की 'एंग्री यंगमैन' की छवि के रूप में इसे और बेहतर साकार रूप दिया गया। यद्यपि इन छवियों ने शोषित और वंचित जनों को मुखर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, किंतु इन्होंने गांधीवादी देश के हाथ में हथियार थमा कर कम नुकसान भी नहीं किया।
1970–80 के दशक में धर्मेंद्र ने ऐक्शन, रोमांस, कॉमेडी—हर शैली में अपना परचम लहराया। उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि दर्शक उन्हें पर्दे पर देखकर अपने भीतर कुछ नया विश्वास महसूस करते थे। “शोले” ने उन्हें अमर बना दिया। “सत्यकाम” ने उन्हें अभिनय की दुनिया का सच्चा शिल्पकार सिद्ध किया। “आन मिलो सजना” और “सीता और गीता” ने उनकी बहुमुखी प्रतिभा दर्शाई। उनका आकर्षण केवल शरीर से नहीं, उनके स्वभाव, उनके सरलपन और उनकी आत्मीय मुस्कान से पैदा होता था।
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने कहा है कि “विश्वास वह पक्षी है जो अँधेरे में भी प्रकाश महसूस करता है।” धरमजी के भीतर के इसी विश्वास ने उनके संघर्ष-पथ को प्रकाशमान किए रखा और वह सफलता के रास्ते पर आगे बढ़ते गए।
दिल से बड़ा इंसान — धर्मेंद्र का मानवीय पक्ष
धर्मेंद्र कभी अपने संघर्ष नहीं भूले। इसलिए उन्होंने नए कलाकारों को प्रोत्साहित किया, फिल्म जगत में विनम्रता का उदाहरण बने और सादगी को अपना हथियार बनाए रखा। उनका जीवन हमें सिखाता है कि इतनी ऊँचाई पर पहुँचकर भी जमीन से जुड़े रहना एक कला है।
कबीरदास ने कहा है —
“बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।”
यही कारण है कि उनके दौर में बड़े-बड़े स्टार-सुपरस्टार पैदा हुए तथा राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन के स्टारडम के दौर में भी उनकी लोकप्रियता में कोई कमी नहीं हुई। दुनिया की बेहतरीन शख्सियतों में उनका नाम शुमार रहा।
रिश्तों का सम्मान — एक पारिवारिक इंसान
सफलता खुद में समस्या नहीं है;
लेकिन यदि सफलता मानसिक संतुलन, विनम्रता, और आत्म-जागरूकता के साथ न आए, तो वही सफलता इंसान के चरित्र में ऐसे नकारात्मक परिवर्तन ला सकती है जो अंततः गिरावट की वजह बन जाते हैं।
पर अभिनेता धर्मेंद्र के साथ शायद ऐसा नहीं था। उनकी लोकप्रियता जितनी बड़ी थी, उनका दिल शायद उससे भी बड़ा था। वे अपने परिवार — पत्नी, बच्चों, भाई-बहनों — से अत्यधिक प्रेम करते थे। उनके बेटे सनी देओल और बॉबी देओल, और बेटियाँ अजीता व विजेता — सभी उनके स्नेह और मार्गदर्शन से ही जीवन में आगे बढ़े।
इंस्पिरेशन का संदेश — हर सपने के लिए संघर्ष जरूरी है
धर्मेंद्र की कहानी हमें बताती है —
कि आप कहाँ से आते हैं, यह महत्वपूर्ण नहीं;
आप कहाँ पहुँचना चाहते हैं, इसके लिए जायज़ लेकिन लगभग नामुमकिन सा लगने वाला कितना गंभीर प्रयास करते हैं, यह महत्वपूर्ण है।
उनका संघर्ष, उनकी इच्छाशक्ति और उनकी मेहनत किसी भी इंसान को प्रेरित करती है कि —
“यदि आप सच्चे दिल से चाहें, तो दुनिया का कोई दरवाज़ा बंद नहीं रहता।” डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम ने कहा था कि “सपना वह नहीं है जो नींद में देखा जाए, सपना वह है जो आपको नींद नहीं आने दे।”
एक अमर विरासत — सिनेमा का चमकता सितारा
आज धर्मेंद्र केवल एक अभिनेता नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का वह अध्याय हैं, जिसे पीढ़ियाँ पढ़ेंगी, याद रखेंगी और प्रेरणा लेंगी। उनकी मुस्कान आज भी युवाओं को प्रेरित करती है कि—
जीवन में संघर्ष हो सकता है, लेकिन सुंदरता भी है;
रास्ते कठिन होते हैं, लेकिन मंज़िलें भी मिलती हैं।
अंतिम संदेश — “सपनों से मत डरो बल्कि उनको पाने के लिए लड़ो”
धर्मेंद्र का जीवन हर उस इंसान के लिए है, जिसने कभी बड़ा सपना देखा हो। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि —
“सपने सच होते हैं…
लेकिन पहले आपको संघर्ष करना पड़ता है।”
इस संघर्ष-पथ पर की खट्टे-मीठे अनुभव भी मिलेंगे, जो आपको आगे की लड़ाई के तैयार और जागरूक करेंगे, बस आपको पहचान करनी होगी — सही साधनों की, सही व्यक्ति की, और समय तो हमेशा ही सही होता है।....बस आप शुरुआत तो करें।
सदी भर की सांस्कृतिक एवं भावनात्मक विरासत स्वयं में समेटे और उसे रुपहले पर्दे पर उड़ेल कर इस दुनिया से रुखसत करने वाले उस महानायक को अंतिम प्रणाम🙏
ज़माना बड़े शौक़ से सुन रहा था,
तुम्हीं सो गए दास्ताँ कहते-कहते।
🪷सहर🪷

वाह !
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