By AMBUJ KUMAR SINGH
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पारिवारिक पृष्ठभूमि
राजीव गांधी का जन्म 20 अगस्त 1944, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) में हुआ था। उनके पिता फिरोज गांधी प्रसिद्ध संसदीय नेता और पत्रकार थे। उनकी माता इंदिरा गांधी थीं, जो बाद में भारत की प्रधानमंत्री बनीं। उनके दादा पंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। इस प्रकार राजीव गांधी ऐसे परिवार से थे, जो भारतीय राजनीति के केंद्र में रहा। पर उससे भी महत्वपूर्ण बात यह थी कि अपने युवावस्था के प्रारंभिक दिनों में वह इस राजनीतिक चकाचौंध से बेहद दूर अपनी तकनीकी दुनिया में ही खुश और संतुष्ट थे। राजनीति में उनका प्रवेश तत्कालीन परिस्थितियों के कारण हुआ था।
राजीव गांधी की शिक्षा-दीक्षा
राजीव गांधी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा शिव निकेतन स्कूल, देहरादून से प्राप्त की थी। इसके बाद उन्होंने आगे की शिक्षा भारत के प्रतिष्ठित लड़कों के बोर्डिंग स्कूल दून स्कूल, देहरादून (भारत का ईटन कॉलेज के नाम से चर्चित) जहाँ बाद में उनके छोटे भाई संजय गांधी भी पढ़े। उच्च शिक्षा हेतु कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (ट्रिनिटी कॉलेज), ब्रिटेन गए, जहाँ उन्होंने इंजीनियरिंग (Mechanical) की पढ़ाई की, लेकिन वह इसे पूरी नहीं कर सके। बाद में राजीव गांधी ने इम्पीरियल कॉलेज, लंदन में अध्ययन किया। राजीव गांधी पढ़ाई में अपेक्षाकृत गंभीर तो थे, लेकिन उनका झुकाव विशेष रूप से तकनीकी और विज्ञान की ओर ज्यादा था।
निजी जीवन
1965-66 के आसपास राजीव गांधी कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (ब्रिटेन) में पढ़ाई कर रहे थे। वहीं इटली की छात्रा एंटोनिया माइनो (Sonia Maino) भी पढ़ाई के लिए इंग्लैंड आई थीं। दोनों की मुलाकात कैम्ब्रिज में एक मित्र के ज़रिए हुई। राजीव गांधी का स्वभाव शांत, सरल और तकनीकी रुचि वाला था, वहीं सोनिया का स्वभाव सौम्य और पारिवारिक था। धीरे-धीरे यह मुलाकात दोस्ती और फिर गहरे प्रेम में बदल गई। दोनों का रिश्ता उस दौर में चर्चा का विषय बन गया था, क्योंकि राजीव गांधी भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे थे। शुरू में इंदिरा गांधी को इस रिश्ते को लेकर थोड़ी चिंता अवश्य हुई, लेकिन बाद में उन्होंने सोनिया को स्वीकार कर लिया। सोनिया गांधी ने भी भारतीय संस्कृति को समझने और स्वीकार करने की भरसक कोशिश की, जिसमें वह सफल भी रहीं। लंबी प्रेम कहानी के बाद 25 फरवरी 1968 को दिल्ली में राजीव गांधी और सोनिया माइनो का विवाह हुआ। यह विवाह भारत और इटली के सांस्कृतिक संबंधों का भी प्रतीक मानी गई। राजीव और सोनिया गांधी के राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के रूप में दो बच्चे भी हुए, जो वर्तमान भारतीय राजनीति में बेहद सक्रिय हैं।
पायलट राजीव गांधी
राजनीति में आने से पहले राजीव गांधी का पारिवारिक जीवन काफी निजी और शांत था। राजनीति से अलग, उनका पहला करियर पायलट का था। वे इंडियन एयरलाइंस में पायलट रहते हुए परिवार के साथ सामान्य जीवन जीते थे। इंग्लैंड में पढ़ाई अधूरी छोड़ने के बाद राजीव गांधी ने पायलट बनने की ट्रेनिंग शुरू की थी। उन्होंने वहाँ एक फ्लाइंग क्लब से पायलट प्रशिक्षण प्राप्त किया और प्राइवेट पायलट लाइसेंस (PPL) हासिल किया। इंग्लैंड से बुनियादी प्रशिक्षण लेने के बाद वे भारत लौटे। यहाँ उन्होंने कमर्शियल पायलट लाइसेंस (CPL) हासिल करने के लिए प्रशिक्षण पूरा किया। इसके बाद उन्हें इंडियन एयरलाइंस (सरकारी वाणिज्यिक एयरलाइन) में बतौर पायलट नियुक्त किया गया। प्रशिक्षण पूरा करने के बाद वे इंडियन एयरलाइंस में कमर्शियल पायलट बने।
राजनीति में प्रवेश
राजीव गांधी का राजनीति में प्रवेश अनिच्छुक और परिस्थितिजन्य था। उनके छोटे भाई संजय गांधी (जो इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे) का 1980 में विमान दुर्घटना में निधन हो गया। संजय गांधी की असमय मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने राजीव गांधी को राजनीति में आने के लिए प्रेरित किया। शुरुआत में उन्होंने राजनीति से दूरी बनाए रखी, लेकिन बाद में परिवार और पार्टी के दबाव में 1980 में सक्रिय राजनीति में आए। 1981 में राजीव गांधी ने उत्तर प्रदेश के अमेठी संसदीय क्षेत्र से उपचुनाव लड़ा (जो पहले संजय गांधी की सीट थी) और संसद सदस्य चुने गए। उसी वर्ष उन्हें युवा कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया। 1982 में दिल्ली में हुए एशियाई खेल (Asiad 1982) के आयोजन में राजीव गांधी की भूमिका महत्वपूर्ण रही। इस आयोजन में उन्होंने आधुनिक तकनीकी साधनों के प्रयोग को बढ़ावा दिया। इन सब बातों से एक तरफ जहां राजीव गांधी को प्रशासनिक और संगठनात्मक अनुभव प्राप्त हुआ, वहीं दूसरी ओर देश की जनता के बीच उनकी छवि आधुनिक और तकनीकी दृष्टिकोण वाले नेता के रूप में बनी, जिसने युवाओं और शहरी वर्ग को विशेष रूप से प्रभावित किया।
प्रधानमंत्री बनने की पृष्ठभूमि
31 अक्टूबर 1984 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। उस समय राजीव गांधी कांग्रेस पार्टी के संगठन में मजबूत स्थिति में थे और जनता के बीच उनकी छवि साफ-सुथरे, आधुनिक और तकनीकी रूप से उन्मुख नेता की थी। इस दुखद घटना के तुरंत बाद देश को स्थिर नेतृत्व देने के लिए इंदिरा गांधी की हत्या के तुरंत बाद उन्हें कांग्रेस पार्टी ने नेता चुना और वे भारत के प्रधानमंत्री बने। उस समय राजीव गांधी केवल 40 वर्ष के थे और वे भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री बने। 1984 के आम चुनावों में उन्होंने कांग्रेस का नेतृत्व किया। चुनाव के नतीजों में कांग्रेस ने 543 में से 414 सीटें जीतकर भारी बहुमत पाया, और राजीव गांधी ने पार्टी और सरकार पर अपनी मजबूत पकड़ बना ली।
प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी के द्वारा किए गए प्रमुख कार्य
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी क्षेत्र में लिए गए प्रमुख निर्णय
राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी का खूब विस्तार हुआ। चूंकि इस समय वैश्विक स्तर पर कंप्यूटर क्रांति शुरू हो चुकी थी। अतः भारत को तकनीकी पिछड़ने से बचाने और युवाओं को नए रोजगार के नए अवसर देने के लिए सरकार द्वारा यह निर्णय लिया गया। इस निर्णय के तहत स्कूल, कॉलेज और सरकारी दफ्तरों में कंप्यूटर युग की शुरुआत हुई। निजी कंपनियों को कंप्यूटर उत्पादन और सॉफ्टवेयर विकास की अनुमति प्रधान की गई। इन निर्णयों का यह प्रभाव रहा, कि भारत IT शक्ति के रूप में उभरने की राह पर चल पड़ा। हालांकि इस दौरान विपक्ष ने कहा कि इससे “नौकरियां छिनेंगी”, पर नतीजा इसका उल्टा रहा और दीर्घकाल में रोजगार के और अवसर बढ़े। राजीव गांधी ने कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और नई तकनीकी उद्योग नीति (1986–88) की आधारशिला भी रखी।
राजीव गांधी के कार्यकाल में तकनीकी क्षेत्र में दूसरी प्रमुख उपलब्धि उनके नेतृत्व में भारत में शुरू की गई टेलीकॉम क्रांति थी। इसे शुरू करने का प्रमुख कारण भारत में अत्यंत पिछड़ी फोन और संचार व्यवस्था को दुरुस्त करके आम जनता तक विश्व स्तरीय टेलीफोन सेवा पहुँचाना था। इस संबंध में लिए गए प्रमुख निर्णय के तहत STD बूथ, MTNL और C-DOT (Centre for Development of Telematics) की स्थापना की गई। इससे देश में लोगों को सस्ती और सुलभ टेलीफोनिक सुविधाएँ प्रदान की गईं। इसके प्रभावस्वरूप “एक-एक गाँव तक टेलीफोन” का सपना साकार होने लगा। यही आधार आगे चलकर मोबाइल और इंटरनेट युग का बना।
अंतरिक्ष और रक्षा संस्थानों को बढ़ावा
भारत को वैश्विक तकनीकी शक्ति बनाने के लिए राजीव गांधी ने अंतरिक्ष एवं रक्षा संस्थाओं को भी खूब बढ़ावा दिया। इन निर्णयों के पीछे एक बड़ी वजह देश को आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ़ाना भी था। इसके लिए उन्होंने ISRO और DRDO को वित्तीय एवं तकनीकी मदद प्रदान की। इससे उपग्रह संचार (INSAT) और अंतरिक्ष कार्यक्रम का विस्तार हुआ। इसके प्रभावस्वरूप भारत ने उपग्रह प्रक्षेपण और दूरसंचार तकनीक में नई ऊँचाई पाई। वर्तमान में ISRO विदेशी उपग्रहों के प्रक्षेपण के माध्यम से आय का वैकल्पिक स्रोत भी तैयार कर रहा है। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में भारत ने रक्षा अनुसंधान में भी काफी प्रगति की। इंदिरा गांधी के कार्यकाल में गाइडेड मिसाइल डेवलपमेंट प्रोग्राम की की गई शुरुआत को राजीव गांधी ने भी आगे बढ़ाया जिससे देश की सुरक्षा सुनिश्चित हुई, एवं विकास को भी सुरक्षा मिली। इसके साथ ही स्वदेशी तकनीकी विकास के माध्यम से रक्षा आयात निर्भरता को कम करने में भी मदद मिली।
1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति
कोठारी आयोग (1964-66) की रिपोर्ट के बाद शिक्षा के क्षेत्र में मूलभूत सुधार हेतु इंदिरा गांधी सरकार ने नई शिक्षा नीति (1968) की घोषणा की। किंतु इन सुधारो को लागू करने के बाद भी शिक्षा के क्षेत्र में अब भी सुधार होना बाकी था। राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में यह स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा था कि शिक्षा प्रणाली की ढ़ेर सारी खामियों की वजह से आज़ादी के चार दशक बाद भी साक्षरता दर बहुत कम (लगभग 35%) थी। स्कूलों और कॉलेजों की शिक्षा पुरानी पद्धति पर आधारित थी, जो आधुनिक विज्ञान, तकनीक और रोजगार की ज़रूरतों से मेल नहीं खाती थी। ग्रामीण और शहरी शिक्षा के बीच गहरी खाई मौजूद थी। 1980 के दशक तक भारत में युवा आबादी बढ़ रही थी। वे रोजगार, तकनीक और आधुनिक अवसरों की माँग कर रहे थे। राजीव गांधी स्वयं तकनीकी पृष्ठभूमि से जुड़े थे (पायलट रहे थे, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में गहरी रुचि थी)। वे चाहते थे कि भारत का भविष्य विज्ञान, तकनीक और आधुनिक शिक्षा पर आधारित हो। वैश्विक स्तर पर विज्ञान और कंप्यूटर क्रांति आ चुकी थी, इसलिए भारत को नई शिक्षा नीति की ज़रूरत थी।
1986 की राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत सर्व शिक्षा अभियान को आधार बनाया गया। इसमें प्राथमिक शिक्षा (6–14 वर्ष) को सभी बच्चों तक पहुँचाने का संकल्प लेकर “शिक्षा सभी के लिए” (Education for All) का लक्ष्य निर्धारित किया गया। शिक्षा में समान अवसर प्रदान करने के लिए लड़कियों, अनुसूचित जाति/जनजाति और पिछड़े वर्गों को शिक्षा में प्राथमिकता प्रदान की गई। नई शिक्षा प्रणाली के अंतर्गत स्कूल स्तर से ही विज्ञान और गणित पर जोर देने के साथ ही व्यावसायिक और तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा दिया गया। पहली बार कंप्यूटर और सूचना प्रौद्योगिकी को शिक्षा का हिस्सा बनाया गया। यह आगे चलकर भारत की IT क्रांति का आधार बना।
पंचायती राज सुधार
स्वतंत्रता के बाद भारत में पंचायती राज व्यवस्था 1959 में बलवंत राय मेहता समिति की सिफारिशों के आधार पर लागू तो हुई, परंतु यह पूरी तरह राज्य सरकारों पर निर्भर थी। पंचायतों के पास पर्याप्त वित्तीय अधिकार नहीं थे। इनके चुनाव भी नियमित नहीं होते थे। ये ग्राम पंचायतें सरकारी अफसरों के अधीन थीं। इस प्रकार धीरे-धीरे यह व्यवस्था कमजोर होती गई। राजीव गांधी का मानना था कि “लोकतंत्र केवल दिल्ली और राज्य की राजधानियों तक सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि इसे गाँव के दरवाजे तक भी पहुँचना चाहिए।” इसलिए उन्होंने ग्रामीण विकास और विकेंद्रीकरण को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाया। वर्ष 1986–87 में राजीव गांधी के नेतृत्व वाली सरकार ने ग्राम पंचायतों को प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता देने की योजना शुरू की। वर्ष 1987 में जवाहर रोजगार योजना की शुरुआत की गई, ताकि ग्रामीण स्तर पर रोजगार और विकास कार्य पंचायतों से कराए जाएँ। और अंततः वर्ष 1989 में
संसद में 64वाँ संविधान संशोधन विधेयक लाया गया, जिसका उद्देश्य पंचायतों को संवैधानिक दर्जा देना, नियमित चुनाव कराना एवं इसके अंतर्गत आरक्षण (SC/ST और महिलाओं के लिए) लागू करना था। यह विधेयक लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में आवश्यक बहुमत न मिलने से पास नहीं हो पाया। हालाँकि राजीव गांधी यह सुधार लागू नहीं कर पाए, लेकिन उनकी इस पहल ने भविष्य की राह खोली। वर्ष 1992 में पी.वी. नरसिंहा राव सरकार ने राजीव गांधी के विचारों पर आधारित 73वें एवं 74वें संविधान संशोधन के माध्यम से क्रमशः पंचायती राज संस्थाओं तथा नगरपालिकाओं/शहरी निकायों को संवैधानिक दर्जा दिलाया। आज गाँवों की पंचायतें और शहरी निकाय, दोनों, इन्हीं संशोधनों के कारण लोकतंत्र की सबसे निचली लेकिन सबसे मजबूत कड़ी बने हुए हैं।
राजीव गांधी की विदेश नीति (शीत युद्ध काल)
राजीव गांधी पंडित नेहरू की गुटनिरपेक्ष (NAM) नीति के समर्थक थे। उन्होंने भारत को अमेरिका और सोवियत संघ दोनों से बराबर दूरी बनाए रखने का प्रयास किया। NAM शिखर सम्मेलन (हरारे, 1986) में उन्होंने विकासशील देशों की आवाज़ को मज़बूत किया। राजीव गांधी ने हरारे सम्मेलन में भारत की तरफ से शांति, परमाणु निरस्त्रीकरण, नस्लवाद व रंगभेद विरोध, फ़िलिस्तीन के समर्थन और आर्थिक न्याय की माँग को मजबूती से रखा। परमाणु निरस्त्रीकरण की पहल राजीव गांधी का सबसे चर्चित प्रस्ताव 1988 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में प्रस्तुत "Action Plan for a Nuclear-Weapon-Free and Non-Violent World Order" था। यह 21वीं सदी तक परमाणु हथियारों को पूरी तरह ख़त्म करने का रोडमैप था। इस पहल ने उन्हें विश्व स्तर पर शांतिदूत (Peace Ambassador) की छवि दी। सोवियत संघ के साथ भारत की परंपरागत मित्रता को उन्होंने जारी रखा, लेकिन साथ ही अमेरिका से भी संबंध सुधारने की कोशिश की।
1985 में अमेरिका यात्रा पर गए और रोनाल्ड रीगन से मिले – यह भारत-अमेरिका रिश्तों की नई शुरुआत मानी गई। पड़ोसी देशों के साथ बेहतर संबंध बनाने की नीति के तहत 1988 में उन्होंने बीजिंग की ऐतिहासिक यात्रा की, जिसने भारत-चीन रिश्तों में नया अध्याय खोला। राजीव गांधी ने नेपाल और भूटान के साथ दोस्ताना संबंध बनाए रखने पर बल दिया। उन्होंने पाकिस्तान के जनरल ज़िया-उल-हक़ से संवाद की कोशिश की, लेकिन इस पड़ोसी देश के साथ भारत के संबंध तनावपूर्ण ही रहे।
राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल के कुछ विवादित निर्णय
शाहबानो मामला
इंदौर, मध्यप्रदेश की शाहबानो बेगम नामक 62 वर्षीय मुस्लिम महिला को उनके पति मोहम्मद अहमद खान ने तलाक (Triple Talaq) दे दिया था। तलाक के बाद शाहबानो ने गुज़ारा-भत्ता (maintenance) के लिए कोर्ट में धारा 125 CrPC (जो सभी धर्मों की परित्यक्ता स्त्रियों को लागू होती है) के तहत मुकदमा दायर किया।सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में फैसला दिया कि शाहबानो को गुज़ारा-भत्ता मिलेगा, क्योंकि भारतीय दंड संहिता (CrPC) धर्म से ऊपर है। यह फैसला महिलाओं के अधिकारों और धर्मनिरपेक्ष न्याय के पक्ष में एक ऐतिहासिक फैसला माना गया। किंतु सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला मुस्लिम धर्मगुरुओं और मुस्लिम पर्सनल लॉ के समर्थकों को स्वीकार नहीं था। मुस्लिम उलेमाओं तथा ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने इसे इस्लामी शरीयत में हस्तक्षेप कहा और विरोध किया। राजीव गांधी पर दबाव पड़ा कि वे इस अल्पसंख्यक समुदाय को शांत करें। इसलिए वर्ष 1986 में संसद ने “मुस्लिम महिला (विवाह-विच्छेद पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986” (Muslim Women (Protection of Rights on Divorce) Act, 1986) पास किया, जिसके तहत यह कहा गया कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को सिर्फ इद्दत की अवधि (लगभग 3 महीने) तक ही पति से भरण-पोषण मिलेगा। इसके बाद उसकी देखभाल परिवार या वक्फ बोर्ड करेगा। राजीव गांधी की सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने के लिए संसद से पारित कराए गए इस अधिनियम के आधार पर स्वयं उनकी तथा उनकी सरकार की छवि पर नकारात्मक असर पड़ा। उन्हें “बहुमत के आगे झुकने वाले नेता” के रूप में देखा गया और उनकी धर्मनिरपेक्ष छवि कमजोर हुई। इससे जहां एक तरफ प्रगतिशील और महिला अधिकार समर्थक वर्ग निराश हो गया वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” (minority appeasement) का आरोप भी लगने लगा। इससे हिंदूवादी राजनीति को बल मिला और कालांतर में भारत में यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पर बहस को तेज हो गई।
बोफोर्स घोटाला
भारतीय सेना के लिए आधुनिक तोपों की आवश्यकता को देखते हुए 1986 में भारत सरकार ने स्वीडन की कंपनी बोफोर्स एबी (Bofors AB) से 155 मिमी हॉवित्ज़र तोपों की सप्लाई का 1,437 करोड़ रुपये का सौदा किया।
यह उस समय का सबसे बड़ा रक्षा सौदा था। अप्रैल 1987 में स्वीडन रेडियो (Swedish Radio) ने खुलासा किया कि बोफोर्स कंपनी ने भारतीय नेताओं, नौकरशाहों और बिचौलियों को 60–65 करोड़ रुपये की रिश्वत दी है। आरोप था कि इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी लोग शामिल थे, जिनमें विशेषकर इतालवी व्यापारी ओत्तावियो क्वात्रोची (Ottavio Quattrocchi) का नाम उभरा। राजीव गांधी पर सीधा आरोप नहीं था कि उन्होंने पैसे लिए, लेकिन कहा गया कि उन्होंने कमीशनखोरों को बचाने की कोशिश की। इस मामले में दशकों तक CBI और अदालतों में जाँच चलती रही। राजीव गांधी के पैसे लेने का सीधा सबूत कभी नहीं मिला। वर्ष 2004 में दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि राजीव गांधी को घोटाले में दोषी नहीं ठहराया जा सकता। लेकिन यह साफ हुआ कि कुछ बिचौलियों और कंपनियों ने रिश्वतखोरी की थी।
भारत में इस प्रकरण का इस्तेमाल मुख्य रूप से राजनीतिक हथियार के रूप में हुआ और राजीव गांधी की “ईमानदार, साफ-सुथरे और आधुनिक नेता” की छवि को गहरा धक्का पहुँचा। राजीव गांधी और कांग्रेस पर जनता के विश्वास में भारी कमी आई। 1989 के आम चुनाव में बोफोर्स मुद्दा मुख्य चुनावी विषय बना और कांग्रेस की भारी हार हुई।
श्रीलंका में भारतीय सेना भेजने का मामला
श्रीलंका में सिंहली बहुसंख्यक सरकार और मुख्यतः उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में बसे तमिल अल्पसंख्यकों के बीच लंबे समय से तनाव था। तमिलों की समान अधिकार एवं स्वायत्तता की मांग थी, जबकि कुछ उग्रवादी गुट (जैसे LTTE – Liberation Tigers of Tamil Eelam) अलग तमिल इलम (देश) चाहते थे। भारत (विशेषकर तमिलनाडु) में तमिलों के प्रति गहरी सहानुभूति थी। इससे भारत पर श्रीलंका में हस्तक्षेप का दबाव बढ़ा। राजीव गांधी के प्रयासों से 29 जुलाई 1987 को भारत-श्रीलंका समझौता (Indo-Sri Lanka Accord) संपन्न हुआ जिस पर राजीव गांधी और श्रीलंका के राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने के बीच हस्ताक्षर थे। इस समझौते के प्रमुख बिंदुओं में तमिलों को राजनीतिक अधिकार और स्वायत्तता देना, श्रीलंका की एकता और संप्रभुता बनाए रखना, भारत द्वारा तमिल उग्रवादियों को हथियारबंद समर्थन नहीं देना तथा शांति बहाली के लिए भारत अपनी भारतीय द्वारा शांति सेना (IPKF) भेजना शामिल था। इस समझौते के तहत 1987 में लगभग 70,000 भारतीय सैनिक श्रीलंका भेजे गए। समझौते के अनुसार शुरू में IPKF का कार्य था, शांति बनाए रखना एवं तमिल उग्रवादियों को आत्मसमर्पण करवाना। लेकिन LTTE ने समझौते को अस्वीकार कर दिया और IPKF के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध शुरू कर दिया, लगभग 1,200 भारतीय सैनिक मारे गए और हज़ारों घायल हुए।राजीव गांधी का श्रीलंका में हस्तक्षेप नियंत्रित और शांतिपूर्ण समाधान की इच्छा से प्रेरित था, लेकिन जमीनी हकीकत ने इसे असफल बना दिया। भारत को राजनयिक लाभ मिला लेकिन सैन्य और राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा। यही घटना राजीव गांधी की हत्या (1991 में श्रीपेरंबदूर, तमिलनाडु में LTTE के आत्मघाती हमले में उनकी हत्या कर दी गई) का कारण भी बनी और यह उनकी विदेश नीति का सबसे विवादास्पद अध्याय माना जाता है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि राष्ट्रीय राजनीति में राजीव गांधी का योगदान ज्यादा बड़ा है और उनके समय के विवाद उसकी अपेक्षा काफी कम हैं। राष्ट्रीय राजनीति के साथ ही अंतरराष्ट्रीय राजनीति में भी शांति, समता, सौहार्द एवं विकास के बीज वपन के कारण राजीव गांधी के जन्मदिवस (20 अगस्त) को सद्भावना दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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