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राष्ट्रपति - 18/07/2021


           

STUDY NOVELTY

By: Ambuj Kumar Singh


                  संविधान : भाग 5

               राष्ट्रपति

आधुनिक शासन व्यवस्थाओं में विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के रूप में सरकार के तीन अंग होते हैं। इसमें विधायिका विधि बनाती है, कार्यपालिका उसे लागू करती है और न्यायपालिका उस विधि की व्याख्या करती है। इन तीनों अंगों के बीच शक्तियों के पृथक्करण पर बल दिया जाता है।

भारत में संसदीय लोकतंत्रात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है। इस व्यवस्था में राष्ट्रपति राष्ट्र का औपचारिक मुखिया होता है जबकि विधायिका में बहुमत दल का नेता ही प्रधानमंत्री होता है, जो सरकार का प्रधान होता है।

राष्ट्रपति

भारत का एक राष्ट्रपति होगा (अनु. 52)। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी और वह इसका प्रयोग स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा (अनु. 53)।

राष्ट्रपति का निर्वाचन

अनु. 54 - राष्ट्रपति का निर्वाचन निर्वाचकगण के सदस्य करेंगे जिसमें -
(क) संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, और 
(ख) राज्य की विधानसभा की निर्वाचित सदस्य होंगे।
70वें संविधान संशोधन 1992 द्वारा दिल्ली और पुडुचेरी विधानसभा के सदस्यों को निर्वाचक मंडल में स्थान प्रदान किया गया है।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की रीति 

जहां तक साध्य हो, राष्ट्रपति के निर्वाचन में भिन्न-भिन्न राज्यों के प्रतिनिधित्व के मापमान में एकरूपता होगी [अनु. 55(1)]। राष्ट्रपति का निर्वाचन आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा [अनु. 55(3)]।

राष्ट्रपति के निर्वाचन की उम्मीदवारी के लिए 50 निर्वाचकों द्वारा प्रस्तावित तथा इतने ही निर्वाचकों द्वारा अनुमोदित होना चाहिए। डाले गए कुल मतों के 1/6 से कम मत पाने वाले उम्मीदवार की जमानत राशि जब्त हो जाती है।

राष्ट्रपति की पदावधि

राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा [अनु. 56(1)]। राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति को संबोधित करके अपना त्यागपत्र दे सकता है। उसे संविधान का अतिक्रमण करने पर अनु. 61 के तहत महाभियोग द्वारा भी हटाया जा सकता है। वह पदावधि समाप्त होने के बावजूद उत्तराधिकारी द्वारा पद ग्रहण करने तक पद पर बना रहेगा। उसके त्यागपत्र की सूचना उपराष्ट्रपति तत्काल लोकसभा अध्यक्ष को देगा। 

किन्ही कारणों से राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति, यदि उपराष्ट्रपति नहीं है तो सर्वोच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश, और यदि वह भी नहीं है तो सर्वोच्च न्यायालय का वरिष्ठतम न्यायाधीश राष्ट्रपति का निर्वाचन होने तक पदभार संभालेगा।

अनु. 57 के अनुसार राष्ट्रपति पुनर्निर्वाचन कि पात्र होगा।

अनु. 58 - राष्ट्रपति निर्वाचित होने के लिए अर्हताएं -
- भारत का नागरिक हो,
- 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
- लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो,
- लाभ का पद धारण न करता हो।

अनु. 59 - राष्ट्रपति संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा और अगर कोई ऐसा सदस्य राष्ट्रपति पद पर निर्वाचित होता है, तो राष्ट्रपति का पद ग्रहण करने की तिथि से सदन में उसका स्थान रिक्त मान लिया जाएगा।

अनु. 60 - राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान।

अनु. 61 - राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया
राष्ट्रपति पर मात्र संविधान के अतिक्रमण के आधार पर ही महाभियोग लगाया जाएगा। महाभियोग प्रारंभ करने से पूर्व अभियोग लगाने वाला सदन कम से कम 14 दिन पूर्व लिखित संकल्प प्रस्तावित करेगा, जिस पर उस सदन के एक चौथाई सदस्यों के हस्ताक्षर हों। दो तिहाई बहुमत से पारित होने के बाद यह प्रस्ताव दूसरे सदन में भेजा जाएगा, जहां वह सदन इस आरोप की जांच करेगा या कराएगा। राष्ट्रपति स्वयं या अपने प्रतिनिधि के माध्यम से सफाई पेश करेगा। यदि दूसरा सदन भी इस प्रस्ताव को दो तिहाई बहुमत से पारित कर दे, तो इस संकल्प के पारित होने की तिथि से राष्ट्रपति अपने पद से पदच्युत माना जाएगा।

अनु. 71 के अनुसार राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति के निर्वाचन संबंधी विवाद का निपटारा उच्चतम न्यायालय करेगा तथा उसका विनिश्चय अंतिम माना जाएगा

वर्तमान में राष्ट्रपति का वेतन ₹5 लाख प्रतिमाह है।

राष्ट्रपति की शक्तियां :
(1) कार्यपालिका शक्ति -
संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित है। भारत सरकार की समस्त कार्यपालिका संबंधी कार्रवाई राष्ट्रपति के नाम से ही संपादित की जाती है (अनु. 77)। राष्ट्रपति संघ के कार्यकलाप के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जानकारी प्रधानमंत्री से मांग सकता है (अनु. 78)।
राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है तथा उसकी सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है (अनु. 75)।
इसके अलावा प्रधानमंत्री राज्यपालों, न्यायाधीशों, महान्यायवादी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक एवं संघ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों को भी नियुक्त एवं पदच्युत करता है।

(2) विधायी शक्ति -
संसद राष्ट्रपति तथा राज्य सभा एवं लोक सभा से मिलकर बनी है (अनु. 79)। राष्ट्रपति संसद के दोनों सदनों के अधिवेशन को आहूत करने के साथ ही उनका सत्रावसान भी करता है तथा उसके पास लोकसभा को भंग करने का भी अधिकार है (अनु. 85)। राष्ट्रपति प्रत्येक चुनावों के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के अधिवेशन के प्रारंभ में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक को संबोधित करने के साथ ही संसद बुलाए जाने का कारण भी बताता है (अनु. 87)। राष्ट्रपति को विशेष परिस्थिति में दोनों सदनों की संयुक्त बैठक आहूत करने का अधिकार भी है (अनु. 108)। राष्ट्रपति निर्वाचन आयोग की सलाह पर संसद के निर्वाचित सदस्यों की निर्योग्यताओं का अंतिम रूप से निर्धारण करता है (अनु. 103)।

(3) मनोनयन की शक्ति -
राष्ट्रपति लोकसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय को अपर्याप्त प्रतिनिधित्व मिलने पर 2 सदस्यों को मनोनीत करता है (अनु. 331), तथा राज्यसभा में साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को मनोनीत करता है (अनु. 80)।

(4) विधेयकों पर विशेषाधिकार -
संसद द्वारा पारित कोई भी विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी मिलने के बाद ही अधिनियम का रूप लेता है। इस संबंध में राष्ट्रपति स्वीकृति देने के अलावा उन विधेयकों पर निम्न प्रकार के वीटो का प्रयोग कर सकता है :
पूर्ण या आत्यंतिक वीटो - गैर सरकारी सदस्यों के विधेयकों पर अनुमति न देना।
निलंबनकारी वीटो - विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना।
जेबी वीटो - विधेयक पर अनुमति न देना, न अनुमति से इनकार करना और न ही उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेजना।

(5) अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनु. 123) -
जब संसद के दोनों सदन सत्र में न हों, और राष्ट्रपति को यह समाधान हो जाए कि ऐसी परिस्थितियां विद्यमान हैं कि जिनके कारण तुरंत कार्रवाई करना आवश्यक है, तो वह अध्यादेश जारी कर सकता है। इस अध्यादेश की वही शक्ति रहती है जो संसद के अधिनियम की होती है। संसद का सत्र प्रारंभ होने पर 6 सप्ताह के भीतर पर इस अध्यादेश को दोनों सदनों से अनुमोदित कराया जाता है, अन्यथा यह प्रवर्तन में नहीं रहेगा। इस अध्यादेश को राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस लिया जा सकता है।

(6) क्षमादान की शक्ति (अनु. 72) -
राष्ट्रपति सैन्य न्यायालयों या संघीय कानूनों के तहत मृत्युदंड या कोई अन्य सजा पाए व्यक्ति की सजा को मंत्रिपरिषद की सलाह पर क्षमा (पूरी तरह से माफ), लघुकरण (कड़े दंड के स्थान पर हल्का दंड), परिहार (प्रकृति बदले बिना दंड की मात्रा कम करना), विराम (विशेष परिस्थिति में दंड की कार्रवाई समाप्त या कम कर देना) और प्रविलंबन (विशेष परिस्थिति में दंड का पालन रोकना) कर सकता है।

(7) आपातकालीन शक्ति (अनु. 352-360) -
राष्ट्र की एकता और अखंडता पर खतरा मंडराने पर, राज्यों में संविधान का अनुपालन न होने पर तथा देश के वित्तीय स्थायित्व पर खतरे की स्थिति में राष्ट्रपति मंत्रिमंडल की सलाह पर आपातकाल की उद्घोषणा कर सकता है :
(क) युद्ध, बाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न आपातकाल (अनु. 352-355)
(ख) राज्य में सांविधानिक तंत्र के विफल होने से उत्पन्न आपातकाल (अनु. 356-357)
(ग) वित्तीय आपातकाल (अनु. 360)

(8) विवेकाधीन शक्ति
संविधान में राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियों का उल्लेख नहीं मिलता है। इसलिए प्रायः राष्ट्रपति का उल्लेख 'रबर स्टैंप' के रूप में किया जाता है। किंतु विशेष परिस्थितियों में वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना भी कार्य कर सकता है -
★ किसी भी विधेयक को पुनर्विचार के लिए लौटाना। किंतु 44वें सविधान संशोधन 1978 के अनुसार पुनर्विचार के बाद आए विधेयक पर राष्ट्रपति को अनुमति देना होगा।  
★ विधेयकों पर अनुमति देना या न देना।
★ बहुमत के अभाव में किसी भी दल को सरकार गठन हेतु आमंत्रित करना।
★ बहुमत खो चुकी सरकार के लोकसभा भंग करने की सलाह को ना मानना।
★ लोकसभा में विश्वास खो चुकी मंत्रिपरिषद द्वारा पद न छोड़ने की दशा में सरकार को बर्खास्त करना।

राष्ट्रपति के विशेषाधिकार 
संविधान के अनु. 361 के अनुसार राष्ट्रपति, राज्यपाल एवं राजप्रमुखों को निम्नलिखित संरक्षण प्रदान किए गए हैं -
★ पद की शक्तियों के प्रयोग एवं कर्तव्यों के पालन हेतु न्यायालय में उत्तरदायी न ठहराया जाना।
★ पदावधि के दौरान किसी न्यायालय में दांडिक कार्रवाई न शुरू किया जाना।
★ पदावधि के दौरान न्यायालय द्वारा गिरफ्तारी के आदेश पर रोक।
★ सिविल मामलों में भी 2 माह पूर्व की लिखित सूचना के पश्चात ही कोई कार्रवाई प्रारंभ की जाएगी।















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