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हैप्पी हाइपोक्सिया | Happy Hypoxia

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हैप्पी हाइपोक्सिया : साइलेंट किलर | Happy Hypoxia : Silent Killer

Happy Hypoxia

04/06/2021



चीन से शुरू हुई कोविड-19 बीमारी ने अब वैश्विक महामारी का रूप ले लिया है । इस महामारी की भारत में दूसरी लहर आने तक, अब तक कुल 2.86 करोड़ लोग संक्रमित हुए हैं, जिसमें से 2.66 करोड़ लोग ठीक हो चुके हैं । भारत में इस महामारी से लगभग 3.41 लाख लोगों की मृत्यु हो चुकी है ।


इस महामारी के विभिन्न वेरिएंट्स के अलग-अलग लक्षण सामने आ रहे हैं । इस बीमारी से ठीक हुए लोगों, विशेषकर युवाओं में एक नया लक्षण दिखाई दे रहा है, जिसे हैप्पी हाइपोक्सिया नाम दिया गया है ।


क्या है हैप्पी हाइपोक्सिया

हाइपोक्सिया एक ऐसी बीमारी है, जिसमें शरीर में ऑक्सीजन की कमी के कारण सिर दर्द, सांस फूलने जैसी समस्याएं दिखाई देती हैं । इस तरह की समस्या मुख्य रूप से पर्वतारोहियों को पर्वत शिखरों पर होती है, जहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र होता है ।

हैप्पी हाइपोक्सिया, हाइपोक्सिया का ही माइल्ड रूप है, जिसमें रक्त में ऑक्सीजन का स्तर आवश्यक 95 फीसद से घटकर 70-80 फीसद तक आ जाता है । इससे ह्रदय, मस्तिष्क,यकृत तथा अन्य अंगों पर बुरा असर पड़ता, जिसे 'एक्यूट रेस्पिरेट्री डिस्ट्रेस सिंड्रोम' नाम दिया गया है ।


हैप्पी हाइपोक्सिया का कारण 

कोविड-19 में मुख्यतः फेफड़ों पर ही ज्यादा बुरा प्रभाव दिखाई दिया है । फेफड़ों की रक्तवाहिनियों में सूजन आ जाने से उनमें खून के थक्के जमा होने लगते हैं, जिससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है । कोविड-19 में 85 फीसद मामले माइल्ड, 15 फीसद मॉडरेट और मात्र 2 फीसद ही जानलेवा हैं । युवा मुख्यतः माइल्ड संक्रमित हैं । चूंकि इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता काफी मजबूत होती है, तथा उनमें सहनशक्ति भी काफी ज्यादा होती है, इसलिए वे शारीरिक तकलीफों को प्रायः नज़रअंदाज़ कर देते हैं, जो कभी-कभी जानलेवा साबित होती है ।


हैप्पी हाइपोक्सिया के लक्षण

हैप्पी हाइपरक्सिया के लक्ष्ण बीमारी ठीक होने के 6-9 दिनों के बीच में दिखाई देते हैं । इसमें होठों का रंग कुछ-कुछ नीला पड़ने लगता है । इसमें त्वचा का रंग भी लाल या बैगनी हो जाता है । इसमें बेवजह बहुत ज्यादा पसीना होता है, और फेफड़ा खराब होने से ऑक्सीजन लेवल काफी नीचे (70-80 फीसद) चला जाता है ।


हैप्पी हाइपोक्सिया से बचाव

कोविड-19 की स्थिति में, चाहे वह माइल्ड हो, या मॉडरेट या फिर जानलेवा, इसमें सतर्कता एवं जागरूकता अत्यंत जरूरी है । इस बीमारी से ठीक हुए रोगियों, विशेषकर युवाओं के लिए यह जरूरी है, कि वह शरीर में आने वाले प्रत्येक बदलाव के प्रति जागरूक रहें । कोविड-19 से ठीक होने के बाद, वह अगले कुछ दिनों तक लगातार शारीरिक बदलावों एवं अपना ऑक्सीजन लेवल चेक करते रहें । ऑक्सीमीटर ना होने की स्थिति में एक सांस में 30 तक गिनती गिन कर के भी इसका अंदाजा लगाया जा सकता है । ऑक्सीजन लेवल कम होने की दशा में तत्काल हॉस्पिटल में एडमिट होना अत्यंत जरूरी है ।


ऑक्सीजन की उपलब्धता न होने की स्थिति में प्रोनिंग (पेट के बल लेटकर सही तरीके से सांस लेने की प्रक्रिया) के माध्यम से भी ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाया जा सकता है । इसे स्वास्थ्य मंत्रालय ने भी 80 फीसद कारगर माना है । इसके अलावा टहलने और सांस से संबंधित यौगिक-क्रियाओं के माध्यम से भी हम अपने स्वास्थ्य में बेहतर बदलाव ला सकते हैं ।


भारत में हैप्पी हाइपोक्सिया का पहला मामला जुलाई 2020 में आया था । किंतु कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण इसमें तीव्र वृद्धि दिखाई दी है, जिससे काफी युवाओं की मौत हो गई है । अतः स्वास्थ्य जागरूकता के माध्यम से न सिर्फ युवाओं को बचाना है, बल्कि भविष्य के संभावित खतरे के प्रति भी तैयार रहना है ।


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