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वैश्विक चुनौतियों के दौर में जी-7 शिखर सम्मेलन | 47th G-7 Summit
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47th G-7 Summit14/06/2021 |
हाल ही में दुनिया के साथ सबसे समृद्ध देशों के संगठन जी-7 की बैठक ब्रिटेन के कॉर्नवॉल में संपन्न हुई । इस बैठक में कोविड-19 महामारी और इसकी उत्पत्ति के कारण के रूप में चीन तथा चीन से संबंधित अन्य मुद्दे ही ज्यादा हावी रहे । चीन ने भी जी-7 के नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा कि अब वह दिन लद गए, जब दुनिया की किस्मत का फैसला मुट्ठी भर देश किया करते थे ।
'ग्रुप ऑफ सेवन' अथवा 'सात का समूह' अमेरिका, कनाडा, जापान, जर्मनी, फ्रांस, इटली तथा यूनाइटेड किंगडम जैसे दुनिया के सर्वाधिक समृद्ध देशों का समूह है । वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में जी-7 देशों का हिस्सा 46% से ज्यादा है, तथा इन देशों की कुल संपत्ति वैश्विक संपत्ति का 58% है । यह दुनिया के सबसे बड़े निर्यातक तथा गोल्ड रिजर्व वाले एवं परमाणु शक्ति उत्पादक देशों का समूह है ।
इस समूह की स्थापना 1973 के तेल-संकट तथा वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण फ्रांस के तत्कालीन राष्ट्रपति बैलेरी जिस्कॉर्ड डी एस्टेइंग ने 1975 में की थी । 1976 में कनाडा को भी इसमें शामिल करने के बाद इसका नाम जी-7 पड़ा । 1981 से यूरोपीय संघ भी इस समूह में गैर-गणनीय सदस्य के रूप में भागीदारी करता आ रहा है ।
सोवियत संघ के पतन के बाद 1997 में इसमें रूस को भी शामिल कर लिया गया और इसका नाम जी-8 पड़ गया । किंतु रूस द्वारा यूक्रेन से क्रीमिया के अधिग्रहण के बाद 2014 में उसे इस समूह से निष्कासित कर दिया गया तथा पुनः इस समूह का नाम जी-7 हो गया ।
जी-7 द्वारा प्रतिवर्ष एक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जाता है, जिसकी मेजबानी सदस्य देशों द्वारा बारी-बारी से की जाती है । इसमें मेजबान देश के द्वारा ही उस वर्ष के लिए, न सिर्फ एजेंडे का निर्धारण किया जाता है, बल्कि विश्व के प्रमुख देशों को भी 'अतिथि देश' के रुप में बुलाया जाता है । इसी के तहत ब्रिटेन ने इस वर्ष भारत, आस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया तथा दक्षिण अफ्रीका को आमंत्रित किया गया है ।
जी-7 का 47वां शिखर सम्मेलन -
इस वर्ष जी-7 देशों का शिखर सम्मेलन ब्रिटेन के कॉर्नवॉल में 11 से 13 जून के मध्य आयोजित किया गया है । इस सम्मेलन में जी-7 के नेताओं ने गरीब देशों को कोविड-19 की एक अरब खुराक देने का फैसला किया है । साथ ही इस समूह ने चीन में कोरोनावायरस की उत्पत्ति की जांच की मांग भी की है । इसके अलावा इस समूह ने चीन के शिनजियांग प्रांत में उइगुर मुसलमानों के मानवाधिकार तथा हांगकांग की स्वायत्तता के मुद्दे को भी उठाया है ।
वस्तुतः पश्चिमी देश चीन के आर्थिक उभार से चिंतित हैं, तथा उसे चुनौती के रूप में देखते हुए जी-7 को चीन के मुकाबिल एक विकल्प के तौर पर खड़ा करना चाहते हैं । यही कारण है कि चीन के बर्ताव को 'एक व्यवस्थित चुनौती' मानते हुए नाटो के महासचिव जेंस स्टोल्टेनबर्ग ने भी नाटो के 'बेल्जियम शिखर सम्मेलन' में सदस्य देशों से चीन के उदय का जवाब देने को कहा है ।
चीन ने भी जी-7 के नेताओं को चेतावनी देते हुए कहा है कि वैश्विक मामलों का निपटारा सभी देशों से विचार-विमर्श के बाद ही होना चाहिए, न कि मुट्ठी भर देशों द्वारा एकतरफा और स्वहित में होना चाहिए ।
BRI बनाम B3W -
वैश्विक आधारभूत संरचना के विकास से संबंधित चीन की 'बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव' के विकल्प के तौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन द्वारा 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड' प्लान प्रस्तुत किया गया है । पूंजीवादी पश्चिमी देश निम्न एवं मध्यम आय वाले देशों के विकास हेतु बुनियादी ढांचे की एक वैकल्पिक योजना प्रस्तुत करके उन्हें साम्यवादी चीनी खेमे में जाने से रोकने का प्रयास कर रहे हैं ।
- ओलंपिक तथा पैरा ओलंपिक में सहयोग का आश्वासन ।
- 2025 तक जीवाश्म ईंधन से सब्सिडी समाप्त करना ।
- जलवायु परिवर्तन से जूझ रहे गरीब देशों को 100 अरब डॉलर देने का वादा ।
- वैश्विक न्यूनतम कारपोरेट कर का समर्थन ।
- महामारी के बाद वैश्विक अर्थव्यवस्था की सहायता हेतु 12 खरब डॉलर देने की योजना ।
2020 के जी-7 शिखर सम्मेलन में कोविड-19 महामारी के कारण भाग न लेने वाले भारतीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस सम्मेलन में वर्चुअली भाग लेते हुए 'एक धरती एक स्वास्थ्य' की अपील की है । उन्होंने कोविड-19 महामारी के मद्देनजर जी-7 के देशों से कोविड-19 की पेटेंट सुरक्षाओं को हटाने को कहा है । उन्होंने कोविड संबंधी प्रौद्योगिकियों पर 'ट्रिप्स' के लिए भारत और दक्षिण अफ्रीका द्वारा विश्व व्यापार संगठन में लाए गए प्रस्ताव पर जी-7 देशों का समर्थन मांगा है ।
बहुत सारी आपसी असहमतियों, विशेषकर जलवायु परिवर्तन एवं आयात-कर संबंधी मुद्दों पर अमेरिका तथा पश्चिमी देशों के बीच असहमतियों, के आधार पर जी-7 की आलोचना की जाती है । इस समूह पर सीमित प्रतिनिधित्व का भी आरोप लगता रहता है, क्योंकि इसमें अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका तथा ऑस्ट्रेलियाई महाद्वीप का कोई देश शामिल नहीं है । इसके अलावा चीन, भारत, ब्राजील जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं को इसमें शामिल न करना तथा इन्हें चुनौती के रूप में देखना, इसे अपेक्षाकृत एक कमजोर संगठन बना देता है, जबकि 1999 में वैश्विक आर्थिक चिंताओं के कारण स्थापित जी-20 इन चुनौतियों के प्रति ज्यादा बड़े एवं बेहतर विकल्प के रूप में इसे चुनौती दे रहा है ।
अन्य विशिष्ट समूहों की तरह जी-7 भी राष्ट्रीय हितों से संचालित एक संगठन है । सभी देश समान विचार वाले देशों के सहयोग से राष्ट्रीय विकास कार्यक्रमों का संचालन तथा अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते है । इसी विचार के तहत इस संगठन की स्थापना भी हुई है । किंतु अगर हम पीछे मुड़कर देखें, तो पाते हैं कि इसी समूह के सदस्यों ने ही पूर्व में न सिर्फ औपनिवेशिक शासन को स्थापित किया था, बल्कि दो विश्व युद्धों एवं शीतयुद्ध का कारण भी बने थे । अतः नई सुरक्षा चुनौतियों के समक्ष इन्हें सर्वसम्मति से प्रतिबद्धता दिखाने की जरुरत है । वस्तुतः भारत को भी जी-7 के साथ ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में P-5 देशों जैसा स्थान देकर ही जी-7 देश शोषणविहीन एवं समानता पर आधारित एक लोकतांत्रिक विश्व के स्वप्न को साकार कर सकते हैं ।
Excellent
ReplyDeleteउत्कृष्ट, रोचक व उपयोगी!
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