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सोशल मीडिया | Social Media
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Social Media04/07/2021 |
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स बनाम सरकार
आज दुनिया में युद्ध के कई मोर्चा खुले हुए हैं । इनमें सबसे नया मोर्चा साइबर दुनिया से जुड़ी सोशल मीडिया का है, जो सूचनाओं तक पहुंच को लेकर चल रहा है । ये सूचनाएं जब राष्ट्र की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करें, तो इन पर नियंत्रण स्थापित करना भी स्वभाविक हो जाता है । वर्तमान विवाद भी अधिकार और सुरक्षा के बीच टकराव को लेकर है, जिसमें एक तरफ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स लोगों की निजता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्न उठा रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का प्रश्न मानते हुए इसके नियमन के लिए प्रतिबद्ध है ।
सूचना प्रसारण एक औद्योगिक उत्पाद है, जो कई चरणों में विकसित हुए हैं । इसके प्रारंभिक चरण में लेखक और पाठक के मध्य प्रकाशक के रूप में एक मध्यवर्ती वर्ग भी होता था, जो समस्त प्रकाशित सामग्री की जिम्मेदारी लेता था । 1995 के बाद सूचना क्षेत्र में केबल एवं सेटेलाइट के रूप में दूसरी क्रांति की शुरुआत हुई । किंतु तीसरी क्रांति, जो इंटरनेट के रूप में आई थी, प्रथम दो क्रांतियों की अपेक्षा ज्यादा व्यापक एवं प्रभावी थी । इसने सोशल मीडिया के रूप में व्यक्ति ही नहीं, बल्कि राष्ट्र-राज्यों को भी काफी हद तक प्रभावित किया है । इसलिए इनके नियमन को लेकर चर्चाएं पूरी दुनिया में होती रहती हैं । भारत भी इनसे अछूता नहीं है ।
उच्चतम न्यायालय ने 2018 में प्रज्वल वाद में स्वत: संज्ञान लेते हुए कहा था कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर चाइल्ड पॉर्नोग्राफी, रेप और गैंगरेप की तस्वीर एवं वीडियो और साइट को खत्म करने के लिए सरकार दिशा-निर्देश जारी कर सकती है । 2020 में राज्यसभा की एक तदर्थ समिति ने भी ऐसे मामलों में इन सूचनाओं के मूल-निर्माता की पहचान का पता लगाने की सिफारिश की थी । इसी के तहत सरकार ने 'सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ के लिए दिशानिर्देश एवं डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियमावली, 2021' 26 मई 2021 से लागू किया है, जिसे लेकर सरकार एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में ठनी हुई है ।
नए नियम के तहत अब सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को इन नियमों के अनुपालन हेतु मुख्य अनुपालन अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी, जो भारतीय होगा । कानून प्रवर्तन एजेंसियों के साथ समन्वय हेतु एक नोडल संपर्क अधिकारी की नियुक्ति भी करनी होगी, जो भारतीय होगा । इसके साथ ही शिकायत समाधान तंत्र के अंतर्गत रेजिडेंट शिकायत अधिकारी की नियुक्ति करनी होगी, और वह भी भारतीय होगा ।
इसके अलावा आवश्यकता पड़ने पर किसी भी सूचना का मूलस्रोत भी बताना होगा । फर्जी अकाउंट्स को 24 घंटे में बंद करना होगा । अकाउंट्स वेरिफिकेशन का मैकेनिज्म और साइन दोनों उपलब्ध कराना होगा । देश की संप्रभुता, अखंडता और मित्र देशों के साथ संबंध के हित में गैर कानूनी जानकारी का प्रकाशन तत्काल रोकना होगा । ये सारे नियम उन्हीं कंपनियों पर लागू होंगे, जिनके पचास लाख से ज्यादा उपभोक्ता हैं ।
ये नियम 2000 से ही लागू हैं, जिनमें 2008, 2011 और 2021 में संशोधन किया गया है । इन नियमों का अनुपालन न करने पर सरकार सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 79(1) के तहत दी गई छूट वापस ले सकती है ।
दुनिया की 7.83 अरब जनसंख्या का 54% हिस्सा सोशल मीडिया से जुड़ा हुआ है । इसके बढ़ते महत्व के कारण इसके गलत इस्तेमाल का भय भी बना रहता है । अक्सर झूठी खबर, अश्लील सामग्री तथा अतिसंवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित जानकारियां भी इसके माध्यम से प्रसारित की जाती हैं । जल, थल, नभ और अंतरिक्ष के अलावा साइबर क्षेत्र (सोशल मीडिया) भी युद्ध के पांचवें क्षेत्र के रूप में स्थापित हो गया है, जो अदृश्य होते हुए भी पारंपरिक क्षेत्रों की तुलना में ज्यादा विनाशकारी है । यह किसी भी भौगोलिक गणतंत्र के समक्ष एक आभासी गणतंत्र को स्थापित करके बिना किसी जवाबदेहिता के देश के एजेंडे को भी प्रभावित करता रहता है ।
हाल के कई चुनाव में यह देखा गया है कि फिल्मों के सांप्रदायिक दृश्यों को एडिट करके उन्हें वास्तविक दंगे के रूप में दिखाकर और उसका दुष्प्रचार करके मतदाताओं को दल-विशेष की ओर झुकाने का प्रयास किया जाता है । भारत के खिलाफ दुष्प्रचार की रणनीति के तहत पाकिस्तान के एक वीडियो में दिखाया गया है, कि 1965 के युद्ध में यह भारतीय मुस्लिम सैनिक ने पाक के खिलाफ लड़ने से मना कर दिया, तो ना सिर्फ उस रेजीमेंट को भंग कर दिया गया, बल्कि भविष्य में किसी मुसलमान को सेना में न रखने की रणनीति भी बनाई गई । सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाह फैलाने के कारण ही भारत में हाल के कुछ वर्षों में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि देखी गई है ।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से भारत की एकता और अखंडता को भी प्रभावित करने का प्रयास बार-बार किया गया है । ट्विटर पर लद्दाख को चीन के नक्शे में दिखाया गया है । हाल ही में ट्विटर पर ही कश्मीर एवं लद्दाख राज्य को भारत के राज्यों के रूप में नहीं बल्कि एक अलग देश के रूप में दिखाया गया है । इसके अलावा किसान आंदोलन के दौरान जुड़े लाल किले की हिंसा एवं कोविड-19 की भारतीय म्युटेंट का दुष्प्रचार के माध्यम से भारत को अस्थिर करने का कुत्सित प्रयास किया गया है ।
ये सोशल मीडिया कंपनियां आपस में तो डाटा साझा करती रहती हैं, लेकिन सरकारी कानून के आगे निजता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर रोड़े अटका रही हैं । व्हाट्सएप ने अपना डाटा अपनी मूल कंपनी फेसबुक के साथ साझा किया है । फेसबुक ने कंसलटिंग फर्म कैंब्रिज एनालिटिका को अपने डाटा दिए हैं । इसके बारे में यह भी कहा जा रहा है, कि इसने 5 लाख भारतीय उपभोक्ताओं का डाटा चुरा कर इनका चुनावी इस्तेमाल किया है, जिसके कारण ये जांच एजेंसियों के रडार पर है ।
सोशल मीडिया के दुरुपयोग का काम सिर्फ आतंकवादी या फिर बड़े अपराधी ही नहीं करते हैं । कई सारे सेलिब्रिटीज तथा हम आदमी के द्वारा भी यह काम किया जाता है । हाल के दिनों में देखा गया है, कि फर्जी अकाउंट्स के माध्यम से अपने फॉलोअर्स की संख्या ज्यादा दिखाने का काम कई नेताओं-अभिनेताओं के द्वारा किया गया है । इसके अलावा लोग सोशल मीडिया पर नामचीन हस्तियों के नाम से फर्जी अकाउंट्स बनाकर अपने फॉलोवर्स की संख्या बढ़ाकर गलत तरीके से अपने आर्थिक हितों को बढ़ाने का प्रयास भी करते हैं ।
सोशल मीडिया कंपनियों पर नियंत्रण स्थापित करने का एक अन्य कारण आर्थिक भी है । व्हाट्सएप के यूजर्स की संख्या 53 करोड़ की फेसबुक की 41 करोड़ है । ये कंपनियां किसी उत्पादक गतिविधियों में संलग्न नहीं हैं, और न ही रोजगार के क्षेत्र में ही इनकी प्रभावशाली उपस्थिति है । फिर भी ये कंपनियां सेलिब्रिटी इनफ्लुएंसर्स की मदद से टारगेटेड एडवर्टाइजमेंट के जरिए करोड़ों-अरबों रुपए कमाती हैं । भौगोलिक उपस्थिति तय न होने से इन पर आयकर तथा कंपनी कर कानून लागू नहीं होते हैं । अतः ये बेहद कम कर चुकाती हैं ।
सरकार की इस नीति पर आरोप लगाने वाली टि्वटर, फेसबुक और व्हाट्सएप जैसी कंपनियों पर खुद अमेरिका भी नियंत्रण लगाने की जरूरत महसूस कर रहा है । अमेरिकी दूरसंचार कानून की धारा 230 के अनुसार कोई समाचार पत्र किसी पर भी झूठा आरोप लगाए तो व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा सकते हैं । किंतु यही कार्य अगर सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर होता है, तो कंपनी नहीं बल्कि ऐसा करने वाले व्यक्ति को ही आरोपी बनाया जाता है । अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, ब्रिटेन और कनाडा जैसे कई देश इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से सूचना के प्रथम स्रोत संबंधी जानकारी मांग चुके हैं । यूरोपीय संघ के 2016 के जनरल डाटा प्रोटक्शन कानून के तहत भी इन सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेहीता तय की गई है । चीन, तुर्की तथा बांग्लादेश जैसे कई देशों ने तो अपने देश के कानून का अनुपालन न करने वाली इन कंपनियों पर प्रतिबंध भी लगा दिए हैं ।
किंतु दूसरी ओर, सरकार पर भी यह आरोप है, कि वह नियंत्रण की यह कार्रवाई सिर्फ राजनीतिक उद्देश्य से कर रही है । विशेषज्ञों का कहना है, कि टूलकिट प्रकरण से सरकार की छवि को नुकसान हुआ है जिसके कारण सरकार सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के साथ सख्ती बरत रही है । इसके अलावा कोविड-19 महामारी तथा महंगाई एवं बेरोजगारी के प्रबंधन में भी सरकार की विफलताओं की सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर हुई आलोचना के कारण भी वह इसे नियंत्रित करना चाहती है । वस्तुतः यह धड़ा इसे असहमतियों को दबाने के सरकार के प्रयास के रूप में देख रहा है ।
इंटरनेट साइट स्टेटिस्टा के अनुसार, देश में इंटरनेट प्रयोगकर्ताओं की संख्या 2020 में 700 मिलियन थी, जिसके 2025 तक 974 मिलियन होने की संभावना व्यक्त की गई है । भारत दुनिया का सबसे बड़ा ऑनलाइन बाजार है । इस बाजार में सारा खेल डाटा का है । उपभोक्ताओं को सभी ऐप्स एवं साइट्स को मुफ्त में देकर इन कंपनियों द्वारा उनकी संवेदनशील जानकारी लेकर बाजार पर अपनी पकड़ बनाई जा रही है । व्यक्ति द्वारा सार्वजनिक किए गए पोस्ट, निजी संदेश और वह इंटरनेट पर क्या खोज रहा है, तथा उसकी पसंद-नापसंद, इन सारी चीजों के माध्यम से ये सोशल मीडिया कंपनियां उनके सामने विज्ञापन के माध्यम से बाजार खोल देती हैं । चूंकि उपभोक्ता अधिकार में आंकड़े नहीं आते हैं । अतः कंपनियों द्वारा इनका न सिर्फ इस्तेमाल किया जाता है, बल्कि इसके बदले में एक बहुत बड़ी आय भी अर्जित की जाती है, जिसके बदले में उपभोक्ताओं को कुछ नहीं मिलता है । यद्यपि इस उपभोक्ताओं के डाटा के संरक्षण से संबंधित एक विधेयक संसद में लंबित है ।
संविधान के अनुच्छेद 19(1) क के तहत, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को प्रजातांत्रिक शासन व्यवस्था की आधारशिला मानते हुए प्रत्येक सरकारों द्वारा इसे बढ़ावा दिया है । इसके अभाव में तार्किक एवं आलोचनात्मक शक्ति, जो प्रजातांत्रिक शासन के संचालन हेतु अत्यंत आवश्यक है, का विकास संभव नहीं होगा । किंतु विशेष परिस्थितियों में संविधान के अनुच्छेद 19(2) में ही इस पर निर्बंधन के प्रावधान भी किए गए हैं । अतः राज्य एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की यह सामूहिक जिम्मेदारी बनती है, कि वे स्वतंत्रता तथा राष्ट्रीय सुरक्षा एवं स्थिरता के बीच आवश्यक संतुलन को ध्यान में रखते हुए मूलभूत कानूनों का पालन करते हुए इस मुद्दे का यथोचित एवं यथाशीघ्र समाधान करें ।
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क्या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के दायरे में रहते हुए भारत ट्विटर पर बैन लगा सकता है? और यदि हां तो फिर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतनी छीछालेदर होने के बावजूद ये बैन क्यों नहीं लगाया जा रहा?
ReplyDelete🙏
आप के अधिकांश लेख ज्वलंत मुद्दों पर और साथ ही समसामयिक घटनाक्रम पर होते हैं। आपके ज्ञान वर्धन एवं मार्गदर्शन के लिए कोटिश: धन्यवाद सर!! 🙏🙏
ReplyDeleteबहुत अच्छा article sir!(A. K singh)
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