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मध्यकालीन प्रांतीय राजवंश - 30/07/2021

Study Novelty

By : Ambuj Kumar Singh




       मध्यकालीन प्रांतीय राजवंश

➡️ जौनपुर राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के दास मलिक सरवर ने की थी। तुगलक वंशीय सुल्तान नासिरुद्दीन महमूद ने मलिक सरवर को अपना वजीर तथा जौनपुर का राज्यपाल बनाया था। 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण के बाद फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर मलिक सरवर ने जौनपुर में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की थी।

     

➡️ मुहम्मद बिन तुगलक के समय अली मुबारक नामक व्यक्ति ने सुल्तान अलाउद्दीन के नाम से बंगाल में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की, तथा लखनौती की जगह पाण्डुआ को अपनी राजधानी बनाया था। किंतु मलिक हाजी इलियास ने उसकी हत्या कर दी , तथा सुल्तान शमसुद्दीन नाम से गद्दी पर बैठा और इलियास शाही वंश की स्थापना की।


➡️ कश्मीर के शासक सुहादेव के समय 1320-23 ई. मंगोल आक्रमण होने पर वह भाग जाने पर लद्दाख के राजवंश का एक सदस्य रिंचन सत्ता पर अधिकार कर लेता है। उसने सुहादेव के वजीर एवं सेनापति रामचंद्र की हत्या कर दी तथा रामचंद्र की पुत्री कोटा रानी से विवाह करके शाहमीर को अपना वजीर बनाया था। हिंदू धर्म में स्थान न मिलने पर उसने इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। उसकी मृत्यु के बाद सुहादेव का चचेरा भाई उदयनदेव राजा बना और कोटा रानी से विवाह किया। किंतु मंगोल आक्रमण के कारण उसे भी राज्य छोड़कर भागना पड़ा। ऐसे में कोटा रानी ने शाहमीर के साथ मिलकर मंगोलों का सामना किया। बाद में शाहमीर ने कोटा रानी से जबरन विवाह किया। किंतु शयन कक्ष में आत्महत्या कर लेने पर 1339 ई. में शाहमीर सुल्तान शमसुद्दीन की उपाधि के साथ कश्मीर में इस्लामी शासन की नींव रखी।


➡️ 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण के बाद सुल्तान नसीरुद्दीन महमूद ने हुसैन नामक व्यक्ति, जिसे फिरोज़ शाह तुगलक ने दिलावर खाँ की उपाधि दी थी, के यहां शरण ली। हुसैन (दिलावर खाँ) 1401-2 ई. में मालवा में स्वतंत्र राज्य की स्थापना की और दिलावर खान गोरी के नाम से सुल्तान की उपाधि के बिना गद्दी पर बैठा। उसकी मृत्यु के बाद 1406 ई. में उसके पुत्र अलप खाँ हुशंगशाह की उपाधि के साथ गद्दी पर बैठा, और मालवा को पूरी तरह स्वतंत्र करके सुल्तान की उपाधि धारण की।


➡️ गुजरात में स्वतंत्र राज्य का संस्थापक जफर खाँ (मुजफ्फर शाह) था। उसके हिंदू पिता साधरन ने फिरोज तुगलक से अपनी बहन का विवाह करके इस्लाम धर्म स्वीकार किया था। दिल्ली के सुल्तानों द्वारा गुजरात में नियुक्त अंतिम सूबेदार था। 1398 ई. में तैमूर के आक्रमण से फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर उसने भी 1401 ई. में दिल्ली की अधीनता त्याग दी थी। उसका पुत्र तातार खाँ दिल्ली पर आक्रमण करना चाहता था। किंतु पिता की उदासीनता के कारण उसने 1404 ई. में जब जफर खाँ को बंदी बना लिया, और नासिरुद्दीन मुहम्मदशाह की उपाधि के साथ दिल्ली पर अधिकार करने चल दिया। मार्ग में ही उसके चाचा शम्स खाँ ने उसे जहर देकर मार दिया। ऐसे में 1407 ई. में जफर खाँ मुजफ्फर शाह की उपाधि के साथ गुजरात में पूर्ण रूप से एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना करता है।


➡️ फिरोजशाह तुगलक ने 1370 ई. में मलिक रजा फारुकी को खानदेश का राज्यपाल नियुक्त किया था। 1388 ई. में फिरोजशाह तुगलक की मृत्यु के बाद राज्य में फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर मलिक रजा फारुकी ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना 1399 ई. में की थी। इस वंश के सभी शासकों द्वारा 'खान' उपाधि धारण करने के कारण इनके साम्राज्य को खानदेश, अर्थात 'खानों का देश' कहा गया है, जिसकी राजधानी बुरहानपुर थी।


➡️ 1325 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक के चचेरे भाई बहाउद्दीन गुर्शास्प के द्वारा सागर (कर्नाटक) में विद्रोह करने और कंपिली राज्य में शरण लेने पर मुहम्मद बिन तुगलक कंपिली राज्य को जीतकर दिल्ली सल्तनत में मिला लेता है। इस युद्ध के दौरान हरिहर एवं बुक्का नामक दो भाइयों को बंदी बनाकर दिल्ली लाकर उन्हें इस्लाम धर्म ग्रहण कराया जाता है। 1327-28 ई. में आंध्र प्रदेश के तटवर्ती प्रदेशों में प्रोलाय एवं कायप नामक दो भाइयों द्वारा तुगलक शासन के विरुद्ध युद्ध छोड़ देने पर कंपिली की जनता सोमदेवराज के नेतृत्व में विद्रोह कर देती है, जिसे दबाने के लिए मुहम्मद बिन तुगलक द्वारा हरिहर एवं बुक्का को दक्षिण भेजा जाता है। माधव विद्यारण्य की प्रेरणा से ये दोनों भाई दिल्ली सल्तनत की अधीनता त्याग कर 1336 ई. में विजयनगर राज्य की स्थापना करते हैं, तथा श्रृंगेरी के मठाधीश विद्यातीर्थ इन्हें पुनः हिंदू धर्म में दीक्षित करते हैं।


➡️ बहमनी साम्राज्य की स्थापना 1347 ई. में मुहम्मद बिन तुगलक के काल में अलाउद्दीन हसन बहमनशाह (हसन गंगू) द्वारा की गई थी, जिसका मूल नाम जफर खाँ था। वस्तुतः यह अमीरान ए सादा का विद्रोह था, जिन्होंने सबसे पहले गुजरात में विद्रोह किया था। इनसे प्रेरित होकर  दौलताबाद के अमीरान ए सादा ने भी विद्रोह करके इस्माइल मख नामक अमीर को नासिरद्दीनशाह की उपाधि देकर अपना शासक बनाया। किंतु वृद्ध नासिरूद्दीनशाह ने अलाउद्दीन बहमनशाह के पक्ष में सिंहासन त्याग दिया था। इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार दिल्ली के एक ब्राह्मण गंगू का सेवक होने के कारण उस के सम्मान में हसन ने अपना नाम हसन गंगू तथा अपने वंश का नाम बहमनी वंश रखा था। वह दक्षिण का पहला सुल्तान था, जिसने हिंदुओं से जजिया कर न लेने का आदेश दिया था।









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