STUDY NOVELTY
By: Ambuj Kumar Singh
अनु. 63 - भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा।
अनु. 64 - उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होगा और अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
परंतु जब वह अनुच्छेद 65 के तहत राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, तब वह राज्यसभा के सभापति के पद पर आसीन नहीं रहेगा और राज्यसभा के सभापति को प्राप्त वेतन-भत्तों का हकदार नहीं होगा।
अनु. 65 - राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग, महाभियोग, अनुपस्थिति, बीमारी या अन्य कारणों से अपने कर्तव्यों के निर्वहन में असमर्थ रहने की दशा में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति पद के कर्तव्यों का निर्वहन करेगा। ऐसे करते समय वह राष्ट्रपति की शक्तियों, विशेषाधिकारों एवं एवं वेतन-भत्तों का अधिकारी होगा।
अनु. 66 - उपराष्ट्रपति का निर्वाचन - (1) उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के समस्त सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचन गण के सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होगा और ऐसे निर्वाचन में मतदान गुप्त होगा।
(2) उपराष्ट्रपति संसद या राज्य विधानमंडल के किसी भी सदन का सदस्य नहीं होगा और ऐसा होने की दशा में उपराष्ट्रपति का पद ग्रहण करने की तिथि से उसका पद रिक्त कर दिया जाएगा।
(3) कोई व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र तभी होगा जब वह :
(क) भारत का नागरिक हो
(ख) 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो
(ग) राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने के योग्य हो
(घ) लाभ का पद धारण न करता हो।
अनु. 67 - उपराष्ट्रपति की पदावधि एवं पद से हटाए जाने की प्रक्रिया - राष्ट्रपति ग्रहण की तिथि से 5 वर्ष की अवधि तक पद ग्रहण करेगा। परंतु पदावधि समाप्त होने पर भी वह उत्तराधिकारी द्वारा पद ग्रहण करने तक अपने पद पर आसीन रहेगा। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के ऐसे संकल्प द्वारा अपने पद से हटाया जा सकेगा, जिसे राज्यसभा के समस्त सदस्यों ने दो तिहाई बहुमत से पारित किया है, और जिसे लोकसभा ने साधारण बहुमत से पारित किया है। किंतु इस संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम 14 दिन पूर्व सूचना उपराष्ट्रपति को देना आवश्यक है।
भारतीय संविधान में मात्र राष्ट्रपति (अनु. 60), उपराष्ट्रपति (अनु. 69) एवं राज्यपाल (अनु. 159) के शपथ का वर्णन मिलता है। शेष संवैधानिक पदाधिकारियों के शपथ से संबंधित सूचना तीसरी अनुसूची में दी गई है।
अनु. 74 - राष्ट्रपति को सलाह देने के लिए एक मंत्रिपरिषद होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा, और राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद की सलाह के अनुसार कार्य करेगा। राष्ट्रपति मंत्रिपरिषद से ऐसी सलाह पर विचार की अपेक्षा कर सकेगा। 44वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के अनुसार राष्ट्रपति ऐसे पुनर्विचार के पश्चात दी गई सलाह के अनुसार कार्य करेगा। इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जाएगी कि क्या मंत्रियों ने राष्ट्रपति को कोई सलाह दी है, और यदि दी तो क्या है।
91वें संविधान संशोधन अधिनियम 2003 के अनुसार अनुच्छेद 75 तथा 164 में नया खंड 1(क) एवं 1(ख) जोड़कर मंत्रिपरिषद में प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री सहित कुल मंत्रियों की संख्या निम्न सदन की कुल सदस्य संख्या का 15% तथा छोटे राज्यों के लिए यह संख्या 12 सुनिश्चित की गई है।
अनु. 75 - प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति करेगा, और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति वह प्रधानमंत्री की सलाह पर करेगा। मंत्री राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद धारण करेंगे। मंत्रिपरिषद लोकसभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी। कोई मंत्री जो निरंतर 6 माह की किसी अवधि तक संसद के किसी सदन का सदस्य नहीं है, उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
भारत में उप-प्रधानमंत्री के पद को संवैधानिक मान्यता प्राप्त नहीं है। भारत के प्रथम उप-प्रधानमंत्री स्वतंत्रता प्राप्ति के समय जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गठित सरकार में मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल थे।
अनु. 76 - राष्ट्रपति उच्चतम न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य किसी व्यक्ति को भारत का महान्यायवादी नियुक्त करेगा। वह भारत सरकार का प्रथम विधि अधिकारी होता है। महान्यायवादी भारत सरकार को विधि संबंधी विषयों पर सलाह देगा। वह निजी वकालत कर सकता है, किंतु भारत सरकार के विरुद्ध किसी मुकदमे की पैरवी या भारत सरकार के विरुद्ध कोई सलाह नहीं देगा। उसे अपने कर्तव्यों के पालन में भारत के सभी न्यायालयों में सुनवाई का अधिकार होगा। वह संसद का सदस्य अथवा अधिकारी न होने के बावजूद, संसद की कार्रवाइयों में भाग ले सकता है, किंतु मत नहीं दे सकता है।
कार्यपालिका को शासन संबंधी मामलों में सहायता देने तथा उसके निर्णयों को लागू करने में सिविल सेवकों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिन्हें स्थाई कार्यपालिका अथवा नौकरशाही के नाम से जाना जाता है।
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Thank you sir
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