STUDY NOVELTY
By: Ambuj Kumar Singh
नीति निदेशक तत्व (भाग - 4)
★ ग्रेनविल आस्टिन ने भारतीय संविधान को मूलतः एक 'सामाजिक प्रलेख' मानते हुए यह स्वीकार किया है, कि इसके अधिकांश प्रावधान सामाजिक क्रांति के लक्ष्यों को बढ़ावा देते हैं, या इससे संबंधित आवश्यक परिस्थितियों का निर्माण करते हैं। इस सामाजिक क्रांति का लक्ष्य मूल अधिकार तथा नीति निदेशक तत्व में निहित दिखाई देता है।
★ राज्य की नीति के निदेशक तत्व संविधान के भाग 4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक उल्लिखित हैं, जो आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं।
★ मूल अधिकार वाद योग्य हैं, जबकि नीति निदेशक तत्व वाद योग्य नहीं हैं, अर्थात इन्हें प्रवर्तित कराने के लिए न्यायालय की शरण नहीं ली जा सकती है।
★ नीति निदेशक तत्व राज्य के नैतिक कर्तव्य हैं, जो कल्याणकारी राज्य की संकल्पना तथा सामाजिक-आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना पर बल देते हैं।
अनु. 36 - राज्य की परिभाषा (भाग-3 जैसी)।
अनु. 37 - इस भाग में अंतर्विष्ट तत्वों का लागू होना -
- ये न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं होंगे।
- देश के शासन में मूलभूत हैं।
- इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है।
अनु. 38 - राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा।
अनु. 39 - राज्य द्वारा अनुसरणीय कुछ नीति तत्व -
(क) सभी नागरिकों को जीविका के पर्याप्त साधन प्राप्त करने का अधिकार हो।
(ख) समुदाय के भौतिक संसाधनों का स्वामित्व एवं नियंत्रण सामूहिक सहित मे हो।
(ग) धन और उत्पादन के साधनों का अहितकारी संकेंद्रण न हो।
(घ) स्त्री-पुरुष कर्मचारियों के स्वास्थ्य तथा बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरुपयोग न हो और उन्हें आयु एवं शक्ति के विपरीत रोजगार में न जाना पड़े।
(ङ) बालकों को स्वस्थ विकास के अवसर व सुविधाएं मिलें तथा शोषण से उनकी रक्षा की जाए।
अनु. 39(क) - समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता (42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
अनु. 40 - ग्राम पंचायतों का संगठन।
अनु. 41 - कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।
अनु. 42 - काम की न्याय संगत और मानवोचित दशाओं तथा प्रसूति सहायता का उपबंध।
अनु. 43 - कर्मकारों के लिए काम एवं निर्वाह मजदूरी तथा ग्रामों में कुटीर उद्योगों को बढ़ाने का प्रयास।
अनु. 43(क) - उद्योगों के प्रबंध में कर्मकारों का भाग लेना (42वें संविधान संशोधन 1976 द्वारा जोड़ा गया)।
अनु. 44 - नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता।
अनु. 45 - 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के लिए नि:शुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का उपबंध (86वां संविधान संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा शिशु की देखरेख तथा 6 वर्ष से कम आयु के बच्चों की शिक्षा का उपबंध राज्य का कर्तव्य द्वारा प्रतिस्थापित)।
अनु. 46 - अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों तथा अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा एवं अर्थ संबंधी हितों की अभिवृद्धि तथा शोषण से उनकी संरक्षा।
अनु. 47 - पोषाहार स्तर जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य तथा औषधीय प्रयोजनों से भिन्न हानिकारक औषधियों के उपभोग का प्रतिषेध।
अनु. 48 - कृषि एवं पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक प्रणालियों से संगठित करना तथा गायों, बछड़ों तथा अन्य दुधारू एवं वाहक पशुओं की नस्लों के परिरक्षण एवं सुधार तथा उनके वध का प्रतिषेध।
अनु. 48(क) - पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्यजीवों की रक्षा (42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
अनु. 49 - राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
अनु. 50 - कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
अनु. 51 - अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा की अभिवृद्धि।
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