STUDY NOVELTY
By: Ambuj Kumar Singh
राष्ट्रीय आपातकाल | National Emergency
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National Emergency25/06/2021 |
रहनुमाओं की अदाओं पर फिदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों
दुष्यंत कुमार की यह गजल 25 जून 1975 की रात भारत में आपातकाल लागू करने वाले नेता के उस स्याह पक्ष की ओर इशारा करती है, जिसने युवा लोकतंत्र का गला घोंटने की कोशिश की थी । इस दिन तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की सलाह पर 'आंतरिक अशांति' के आधार पर देश में आपातकाल लागू किया था ।
क्या है आपातकाल
भारतीय संविधान में आपातकालीन व्यवस्था जर्मनी के संविधान से ली गई है । आपातकाल का अर्थ है - राष्ट्र में संकट की स्थिति । भारतीय संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल का वर्णन है -
1. युद्ध, वाह्य आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह से उत्पन्न पर आपातकाल (अनुच्छेद 352)
2. राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता से उत्पन्न आपातकाल (अनुच्छेद 356)
3. वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360)
वस्तुतः यह निवारण से बेहतर रोकथाम को मानते हुए संघ की एकता और अखंडता को बचाए रखने का एक संवैधानिक उपबंध है ।
25 जून 1975 को लागू किया गया राष्ट्रीय आपातकाल भारत में तीसरी बार लागू हुआ था । प्रथम बार 1962 में, जब चीन ने आक्रमण किया था, तथा दूसरी बार 1971 में, जब भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हुआ था । इन दोनों बार आपातकाल 'युद्ध' के आधार पर लागू हुआ था, जबकि 1975 का आपातकाल 'आंतरिक अशांति' के आधार पर लागू किया गया था ।
आपातकाल की पृष्ठभूमि
भारत में आपातकाल की पृष्ठभूमि 1967 से ही तैयार होने लगी थी, जब राज्यों में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकारों की स्थापना हुई थी । चूंकि केंद्र के एजेंट के रूप में राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति की जाती थी, जो प्राय: केंद्र के इशारे पर ही काम करते थे । ऐसे में कांग्रेस और विपक्षी दलों के मध्य टकराव बढ़ने लगे थे, और इस टकराव के मुद्दे संघ-राज्य संबंध से ही संबंधित थे ।
अगर हम विधायी संबंधों की बात करें, तो राज्य सूची के विषयों पर आपात स्थिति में केंद्र द्वारा अतिक्रमण, राज्य विधायकों को राष्ट्रपति के लिए विचारार्थ आरक्षित रखने की राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति तथा राज्य की क्षेत्रीय सीमा को पुनर्निर्मित करने की केंद्र की शक्ति इसके प्रमुख मुद्दे थे ।
अगर हम प्रशासनिक एवं कार्यपालिका संबंध की दृष्टि से देखें, तो राज्यों में राज्यपाल की नियुक्ति एवं इस संबंध में राज्यों से विचार ना करना तथा राष्ट्रपति शासन का आदेश एवं राज्य की सहमति के बगैर केंद्रीय संपत्ति की सुरक्षा हेतु वहां केंद्रीय बलों की तैनाती तथा अखिल भारतीय सेवाओं एवं केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा केंद्र का राज्यों पर नियंत्रण जैसे मुद्दे शामिल थे ।
केंद्र और राज्य संबंध वित्तीय आधार पर भी प्रभावित होते रहे हैं केंद्र और राज्यों के मध्य युद्ध के आवंटन तथा केंद्र द्वारा निश्चित वित्त आयोग के कार्य क्षेत्र के माध्यम से राज्यों को वित्तीय आवंटन में भेदभाव से भी दोनों के संबंध प्रभावित होते थे ।
1971 से 77 तक भारत में 'एकात्मक संघवाद' का दौर चला । इस दौर में विपक्षी ही नहीं बल्कि कांग्रेस के अंदर के विरोधी भी इंदिरा गांधी से पराजित हुए । इस प्रकार पार्टी और सरकार दोनों में उनका वर्चस्व स्थापित हो गया और इस प्रकार कैबिनेट और संसदीय व्यवस्था 'प्रधानमंत्री व्यवस्था' में बदल गई, जिसकी धुरी इंदिरा गांधी हो गईं ।
आपातकाल के कारण
1. 1968 में केंद्रीय कर्मचारियों द्वारा हड़ताल करने पर केंद्र सरकार द्वारा हड़ताल को अवैध घोषित करने के लिए 'एसेंशियल सर्विस मेंटेनेंस ऑर्डिनेंस' संसद में पारित किया गया। केरल ने इसे मानने से इनकार करने के बावजूद केंद्रीय प्रतिष्ठानों की सुरक्षा की बात स्वीकार की । किंतु इसके बावजूद गृहमंत्री वाई. बी. चाव्हाण ने केरल राज्य की अनुमति के बिना सीआरपीएफ की बटालियन वहां भेज दी ।
2. आपातकाल के प्रमुख कारणों ने 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध भी था, जिसके कारण भारत में लाखों शरणार्थी आए, जिसने भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव डाला ।
3. 1973 के 'योम किप्पूर युद्ध' के बाद ओपेक देशों द्वारा इजराइल का समर्थन कर रहे देशों पर तेल प्रतिबंध लगा देने से तेल की कीमतों में असाधारण रूप से वृद्धि हुई, जिससे भी भारतीय अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा ।
4. 1971 में 'गरीबी हटाओ' का नारा देकर इंदिरा गांधी सत्ता में आई थी । किंतु उपर्युक्त कारणों के अलावा अन्य घरेलू कारणों से गरीबी एवं बेरोजगारी की स्थिति में बेतहाशा वृद्धि होने तथा 'हरित क्रांति' के बावजूद खाद्यान्न की समस्या समाज के सबसे निचले वर्ग तक बने रहने के कारण स्थिति खराब होती रही । आर्थिक स्थिति खराब होने पर केरल जैसे राज्यों ने चीन से धन प्रबंध करने की बात कही, तो केंद्र राज्य संबंध और ज्यादा खराब हो गए ।
5. आपातकाल के पीछे कहीं न कहीं न्यायिक निर्णय भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से उत्तरदाई थे । इंदिरा गांधी के सुधार कार्यक्रमों (जैसे प्रिवी पर्स की समाप्ति तथा बैंकों का राष्ट्रीयकरण) ने' गरीबों की मसीहा' (हिंदी कवि श्रीकांत वर्मा द्वारा गढ़ी गई इंदिरा गांधी की पहचान) के रूप में उन्हें नई पहचान दी । किंतु इन सभी का न्यायपालिका द्वारा न सिर्फ विरोध किया गया बल्कि इंदिरा द्वारा लाए गए संविधान संशोधनों को 'आधारभूत ढांचा के सिद्धांत' से परिसीमित कर दिया गया ।
6. गरीबी और बेरोजगारी की स्थिति के बीच दिसंबर 1973 में गुजरात के अहमदाबाद जिले के एल. डी. कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग के छात्रों द्वारा फीस वृद्धि के विरुद्ध एक आंदोलन शुरू हुआ, जो आगे चलकर गुजरात की कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने के 'नवनिर्माण आंदोलन' में तब्दील हो गया । मजबूरन इंदिरा गांधी को चिमनलाल के नेतृत्व वाली गुजरात विधानसभा को निलंबित करके वहां राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा ।
7. गुजरात के आंदोलन से प्रेरित होकर मार्च 1974 में बिहार में भी छात्र आंदोलन शुरू हो गए । बाद में यह जयप्रकाश नारायण द्वारा इनका नेतृत्व अपने हाथ में लेने के कारण इसे 'जेपी आंदोलन' का नाम दिया गया । जून 1974 में जेपी ने पटना से 'संपूर्ण क्रांति' की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य था - सत्ता परिवर्तन करना । इसी दौरान जॉर्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में बिहार में 3 सप्ताह की लंबी रेलवे की हड़ताल हुई ।
8. 1971 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने समाजवादी नेता राजनारायण को पराजित कर दिया था जिसे उन्होंने 4 साल बाद चुनौती दिया । 12 जून 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त करते हुए राजनारायण को विजेता घोषित कर दिया तथा इंदिरा के 6 साल चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी । इंदिरा पर यह आरोप लगा था कि उन्होंने चुनाव के लिए कैप 75 हजार की जगह 15 लाख रुपए खर्च किया तथा चुनाव जीतने के लिए कंबल को धोती बंटवा कर गलत तरीके से लोगों को लुभाया । उन्होंने यशपाल कपूर जैसे केंद्रीय कर्मचारी की सेवा लेकर प्रशासनिक मशीनरी का दुरुपयोग किया ।
24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी. आर. कृष्ण अय्यर ने उच्च न्यायालय के आदेश पर सशर्त रोक लगा दी और इंदिरा गांधी को अपने पद पर बने रहने तथा संसद में बगैर मतदान की शक्ति के भाग लेने की छूट दे दी । 25 जून को जयप्रकाश ने एक रैली की और अब उन्होंने संपूर्ण शक्ति के साथ इंदिरा का विरोध करते हुए 29 जून तक उन्हें पद छोड़ने का अल्टीमेटम भी दे दिया । ऐसे में इंदिरा गांधी ने इन विरोध प्रदर्शनों को 'आंतरिक अशांति' मानते हुए 25 जून की आधी रात को आपातकाल की घोषणा कर दी ।
आपातकाल के निर्णय
- आपातकाल लागू होते ही जनता के मूल अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा सरकार विरोधी भाषणों एवं प्रदर्शनों पर पूर्ण रोक लगा दी गई ।
- आपातकाल लागू होते विपक्षी दल के प्राय: सभी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया । इन नेताओं का 'मीसा कानून' के तहत खूब उत्पीड़न किया गया । इसमें सर्वाधिक उत्पीड़न आरएसएस पृष्ठभूमि के नेताओं का हुआ ।
- आपातकाल के सबसे खराब निर्णयों में एक था, चीन की तरह जनसंख्या नियंत्रण का जबरन पुरुष नसबंदी कार्यक्रम, जो इंदिरा गांधी के पुत्र संजय गांधी के बेहद करीबियों में एक रुखसाना सुल्ताना के नेतृत्व में चलाया जा रहा था ।
- 25 जून 1975 के आपातकाल को प्रेस एवं पत्रकारिता क्षेत्र में भी इसे 'काले दिन' के रूप में जाना जाता है, क्योंकि इस दिन से ही प्रेस पर भी सेंसरशिप लागू हो गई थी ।
- आपातकाल लागू होने के कुछ ही दिनों बाद सिखों द्वारा अमृतसर में 'कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति' के विरोध में आंदोलन शुरू कर दिया गया था । अकाली दल ने सबसे पहले 'लोकतंत्र की रक्षा का अभियान' नाम से 9 जुलाई से अमृतसर से विरोध आंदोलन शुरू किया था ।
- आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने संविधान संशोधनों के माध्यम से अपनी राजनीतिक एवं संवैधानिक स्थिति को मजबूत करने तथा न्यायपालिका की शक्तियों को सीमित करने का प्रयास भी किया । इसके तहत किए गए '42वें संविधान संशोधन, 1976' को उसके आकार के आधार पर 'मिनी संविधान' का नाम दिया गया है ।
सकारात्मक प्रभाव
आपातकाल के कुछ सकारात्मक प्रभाव भी दिखाई देते हैं । इस दौरान इंदिरा गांधी ने जहां एक तरफ संविधान संशोधन के माध्यम से अपनी पंथनिरपेक्ष एवं समाजवादी छवि को और सुंदर बनाने का प्रयास किया, वहीं उन्होंने '20 सूत्री कार्यक्रम' (1975) के माध्यम से ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सुधार के प्रयास भी किए । इसी दौरान यह भी देखने को मिला कि कर्मचारी सरकार के भय से काम के प्रति सजग हो गए थे ।
18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग करते हुए मार्च में चुनाव कराने की घोषणा कर दी । 21 मार्च 1977 को उन्होंने 'आपातकाल समाप्ति की घोषणा' भी कर दी । मार्च में छठी लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस को मात्र 153 सीट मिलीं, जिसमें स्वयं इंदिरा गांधी और संजय गांधी चुनाव हार गए । इस प्रकार 'इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा' का नारा लगाने वाले व्यक्ति-पूजक भारतीय मतदाताओं ने अपने राजनेताओं को आईना दिखा दिया ।
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Good effort
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