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सेंट्रल विस्टा पुनर्निमाण परियोजना | Central Vista Redevelopment Project
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Central Vista Redevelopment Project06/06/2021 |
किसी भी निर्णय का सही या गलत होना, उसकी टाइमिंग पर निर्भर करता है । यही बात हम सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के संदर्भ में भी कह सकते हैं । केंद्र सरकार की इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना में जहां व्यापक स्तर पर दिल्ली के सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में पुनर्निर्माण का कार्य चल रहा है, वहीं दिल्ली सहित पूरे भारत में कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण मौतों का सिलसिला भी जारी है । ऐसे में जब लोगों से यह कहा जा रहा है, कि वह बाजार से खरीद करके भी टीका लगवा सकते हैं, तो भारी-भरकम राशि की इस परियोजना को जारी रखने पर सवाल उठना तो लाज़मी है ।
क्या है सेंट्रल विस्टा पुनर्निमाण परियोजना
राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक राजपथ के दोनों ओर के केंद्रीय प्रशासनिक क्षेत्र को 'सेंट्रल विस्टा' कहा जाता है । यह परियोजना इसी क्षेत्र के पुनर्विकास से संबंधित है । 1911 में ब्रिटेन के राजा किंग जॉर्ज पंचम ने भारत की राजधानी कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) से बदलकर दिल्ली कर दी थी । उसी समय दिल्ली के पुनर्निर्माण की योजना बनी, जिसकी जिम्मेदारी एडविन लुटियंस और हर्बर्ट बेकर को दी गई थी ।
10 दिसंबर 2020 को प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस परियोजना की आधारशिला रखी गई थी । इस परियोजना की लागत लगभग 20 हजार करोड़ रुपए बताई जा रही है । इस परियोजना को अगस्त 2024 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है । किंतु संसद भवन को मार्च 2022 तक, स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ से पूर्व पूरा करने का लक्ष्य रखा गया है ।
इस परियोजना में नए संसद भवन, केंद्रीय सचिवालय, प्रधानमंत्री एवं उपराष्ट्रपति के आवास तथा विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के कार्यालय एवं आवासीय परिसर भी निर्मित किए जाएंगे । इसके तहत नॉर्थ एवं साउथ ब्लॉक को संग्रहालय में बदलकर उनकी जगह पर नए निर्माण किए जाएंगे । इस परियोजना में 'इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र' को भी स्थानांतरित करने का प्लान है ।
परियोजना की अनिवार्यता
सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट की अनिवार्यता के संबंध में कई कारण बताए गए हैं । इसमें सबसे प्रमुख कारण है, इसमें ज्यादातर इमारतें 1911 से 1931 के बीच बनाई गई थीं, जो अपनी आयु को पूरी कर चुकी हैं । इन भवनों को भूकंपरोधी भी नहीं बनाया गया है । इसलिए यह चिंता और बढ़ जाती है । 2001 में संसद पर हमले के बाद इन भवनों पर हमले की संभावना पर भी काफी बहस हुई थी । इसके अलावा कमजोर अग्निशमन व्यवस्था तथा जल एवं विद्युत की बेतरतीब व्यवस्था भी अन्य कारण के रूप में बताए गए हैं ।
सेंट्रल विस्टा क्षेत्र में लोगों एवं अधिकारियों को अपने कार्य के सिलसिले में विभिन्न मंत्रालयों विभागों के चक्कर लगाने पड़ते हैं, जिससे डीजल-पेट्रोल की खपत से आर्थिक हानि एवं पर्यावरण को काफी नुकसान होता है, जबकि नई परियोजना में सारे भवन एक ही जगह पर स्थित होने के कारण काफी आर्थिक बचत होगी । नई परियोजना में इन स्थानों को मेट्रो स्टेशन से भी इंटरलिंक किया गया है । नए निर्माणों से प्रति वर्ष किराए में दिए जाने वाले करीब 1000 करोड़ रुपए के वार्षिक बचत का भी अनुमान लगाया गया है ।
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री आवास को संग्रहालय में तब्दील किए जाने से प्रधान मंत्री को अलग आवासीय क्षेत्र में शिफ्ट होना पड़ा था । ऐसे में इस परियोजना के तहत नए प्रधानमंत्री आवास योजना पर विचार किया गया है ।
दिल्ली के मास्टर प्लान 1962 में भी इस क्षेत्र को सांस्कृतिक लिहाज से उन्नत मानते हुए यहां ऐसे ही तोड़-फोड़ करके निर्माण करने के बजाए एक व्यापक अध्ययन एवं भविष्य की जरूरतों के अनुसार निर्माण-योजना पर बल दिया गया था । पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव गांधी के कार्यकाल में भी कार्यालय एवं आवासीय परिसर के निर्माण की आवश्यकता महसूस की गई थी । इन्हीं सारी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने सितंबर 2019 में 'सेंट्रल विस्टा पुनर्निर्माण परियोजना' की घोषणा की है ।
निर्माणकर्ता
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को आकार देने की जिम्मेदारी वास्तुकार एवं शहरी योजनाकार बिमल पटेल को दी गई है, और यहां निर्माण का कार्य टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड के द्वारा किया जा रहा है ।
परियोजना की आलोचना
इस योजना की आलोचना का प्राथमिक कारण भारी धनराशि के अपव्यय को माना जा रहा है ।कोविड-19 बीमारी से बचाव के लिए वैक्सीनेशन एवं स्वास्थ्य संबंधी अन्य आवश्यकताओं के लिए वैश्विक मदद पर निर्भरता, अर्थव्यवस्था के क्षेत्र में लगातार नकारात्मक प्रदर्शन के अलावा कोविड-19 की तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए 20 हजार करोड रुपए की भारी धनराशि को निर्माण कार्यों पर खर्च करना उचित नहीं माना जा रहा है । यद्यपि सरकार का कहना है, कि उसने वैक्सीनेशन के लिए 35 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था कर ली है ।
इस परियोजना की आलोचना का अन्य कारण पर्यावरणीय प्रभाव का उचित मूल्यांकन ना करना भी बताया जा रहा है । यहां लगातार हो रहे निर्माण कार्यों से प्रदूषण की समस्या भी बढ़ गई है । इसके अलावा लोगों को इस बात की भी चिंता सता रही है, कि भविष्य के लिए यह क्षेत्र आम आदमी के लिए प्रतिबंधित ना कर दिए हैं । इस परियोजना में पारदर्शिता को लेकर के भी प्रश्न उठाए जा रहे हैं ।
वर्तमान में परियोजना को लेकर विरोध का एक प्रमुख कारण लॉकडाउन के इस दौर में भी इस परियोजना को 'आवश्यक सेवा' घोषित करना है । सरकार द्वारा 180 वाहनों से मजदूरों के आने-जाने की अनुमति दी गई है, जबकि कोविड-19 से दिल्ली में अब तक कुल 24.5 हजार लोगों की मौत हो चुकी है । इस परियोजना से अन्य आवश्यक सेवाएं प्रभावित होने की चिंता भी जताई जा रही है ।
विपक्ष की भूमिका
जहाँ तक सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे विपक्ष का प्रश्न है, तो कांग्रेस जहां वैक्सीनेशन के लिए केंद्र सरकार की ओर देख रही है, वहीं राजस्थान में कांग्रेस की गहलोत सरकार अपने विधायकों के लिए 160 आलीशान फ्लैट्स बनवा रही है ।
परियोजना रोकने के लिए याचिका
इन्हीं परिस्थितियों के बीच हाल ही में सेंट्रल विस्टा परियोजना को रोकने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका अनुवादक अन्य मल्होत्रा तथा इतिहासकार एवं वृत्तचित्र निर्माता सोहेल हाशमी द्वारा दायर की गई थी । किंतु दिल्ली उच्च न्यायालय ने इस परियोजना को 'अहम एवं आवश्यक' मानते हुए इस पर रोक लगाने की याचिका को 'किसी मकसद से प्रेरित' मानते हुए याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया है ।
उपसंहार
देश के पावर कॉरिडोर को एक नई पहचान देने के लिए सेंट्रल विस्टा परियोजना काफी महत्वाकांक्षी परियोजना है । किंतु वैश्विक महामारी कोविड-19 के दूसरे दौर में घुटनों के बल आ चुके भारत को लेकर यूनिसेफ जैसी अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं, जब यह कह रही हों, कि अब दुनिया का भविष्य इस बात पर निर्भर करता है, कि भारत का भविष्य कैसा होगा, तो सरकार की प्राथमिकताओं पर संदेह करना स्वाभाविक है । इस महामारी में 3.44 लाख जानों को खो देने के बाद भी अगर हम अब भी नहीं चेते, तो इतिहास ही नहीं, बल्कि भविष्य भी हमें माफ नहीं करेगा, क्योंकि महामारी की अगली मार हमारे भविष्यों (बच्चों) पर पड़ने की संभावना जताई जा रही है ।
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