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इजराइल-फिलिस्तीन (अरब) संघर्ष - १ | Israel Palestine Conflict - 1

STUDY NOVELTY

By: Ambuj Kumar Singh

'इजराइल-फिलिस्तीन (अरब) संघर्ष - भाग १ '    

Israel Palestine Conflict - Part 1

16/05/2021


शीत युद्धोत्तर विश्व-व्यवस्था के संदर्भ में अमेरिकी राजनीति विज्ञानी सैमुअल हटिंगटन का मानना था कि लोगों की सांस्कृतिक एवं धार्मिक पहचान ही संघर्षों का मुख्य कारण होगी । कुछ विद्वान इस बात से सहमत हैं । किंतु फिलिस्तीन के संदर्भ में यह बात पूरी तरीके से सही नहीं है क्योंकि यहां पहचान से बड़ी समस्या अस्तित्व बचाने की है । फिलीस्तीन राष्ट्र आज भी पूरी तरीके से राज्य की शक्ल नहीं ले पाया है । साथ ही , इजराइल (यहूदी) प्रतिरोध भी अकारण नहीं है ।


संघर्ष का मूल कारण यरूशलम :-

पश्चिम एशिया (मध्य पूर्व) का संकट मूलतः  यरूशलम पर अधिकार को लेकर है । यहां तीनों धर्मों (यहूदी , ईसाई और इस्लाम) का पवित्र स्थान पाया जाता है । यहूदियों का यहां पर सबसे प्रमुख स्थान वेस्टर्न वॉल उनके पहले पैगंबर इब्राहिम से संबंधित है । ईसा मसीह को यहीं पर सूली पर चढ़ाया गया और यहीं उन्होंने पुनर्जीवन प्राप्त किया । इस्लाम धर्म का प्रमुख स्थान अल अक्सा मस्जिद भी यहीं है । अतः तीनों धर्मों के लोग यरूशलम पर अपना अधिकार चाहते हैं और इसको लेकर आज भी संघर्ष जारी है ।


यहूदी धर्म और राज्य का इतिहास :-

यहूदी धर्म और राज्य का का इतिहास लगभग 3000 वर्ष पुराना है । इसकी शुरुआत इनके पहले पैगंबर अब्राहम से होती है , जिन्हें ईसाई एवं इस्लाम धर्म में भी पैगंबर माना जाता है । इन के पोते याकूब (अन्य नाम इजराइल) ने ही इजराइल राज्य की स्थापना की थी । याकूब का पुत्र यहूदा था और आगे चलकर इन्हीं के नाम पर इनके अनुयायियों का नाम यहूदी पड़ा । 700 ईसा पूर्व में सीरियाई साम्राज्य का हमला होने से यहूदी कबीलों में बिखराव आ गया । 72 ईसा पूर्व में रोमन साम्राज्य का हमला होने से यहूदी पराजित होने के साथ ही वहां से पलायन करने लगे । किंतु सातवीं सदी में इस्लाम धर्म की स्थापना के बाद उनका तीव्र पलायन शुरू हुआ और वे पूरी दुनिया में फैल गए ।


यहूदियों की मातृभूमि पर वापसी :-

1897 में स्विट्जरलैंड के बेसल शहर में यहूदियों ने एक संगठन की स्थापना की , जिसका उद्देश्य था , यहूदियों की मातृभूमि पर वापसी । इसके लिए यहूदियों ने ब्रिटेन से वार्ता भी प्रारंभ कर दी । चूंकि फिलिस्तीन पर ब्रिटेन का ही नियंत्रण था , इसलिए यह जरूरी भी था । 1917 में ब्रिटेन ने इस बात का समर्थन भी कर दिया । प्रथम विश्व युद्ध के बाद यहूदियों का फिलिस्तीन लौटना प्रारंभ हो गया । इससे अरबवासी चिंतित हो गए । किंतु ब्रिटेन ने उन्हें आश्वासन दिया कि यहूदियों को पूरा फिलिस्तीन नहीं दिया जाएगा ।

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यहूदियों की फिलिस्तीनी क्षेत्र में वापसी और तेज हो गई । उन्होंने पूरे फिलिस्तीनी क्षेत्र पर अधिकार का प्रयास शुरू कर दिया । ऐसे में संघर्ष बढ़ता देख ब्रिटेन ने संयुक्त राष्ट्र से हस्तक्षेप की मांग की । संयुक्त राष्ट्र की कोशिशों से फिलिस्तीन का विभाजन हो गया और आधा क्षेत्र यहूदियों को प्राप्त हुआ ।


1948 का युद्ध :-

ब्रिटेन की वापसी के बाद मिस्र ,सीरिया ,जॉर्डन ,  इराक , लेबनान आदि देशों ने 1948 ईस्वी में इजराइल पर हमला कर दिया । किंतु इजराइल ने उन्हें परास्त करके फिलिस्तीन के तीन चौथाई भाग एवं मिस्र के ईलात बंदरगाह पर कब्जा कर लिया । इससे 10 लाख फिलिस्तीनी शरणार्थी की स्थिति में आ गए । इसके बाद अरबों द्वारा इजराइल के कानूनी दर्जे से इंकार कर दिया गया ।


द्वितीय अरब-इजराइल युद्ध :-

मिस्र के राष्ट्रपति कर्नल नासिर को पता था कि इजराइल के पीछे पश्चिमी शक्तियां खड़ी हैं । इसलिए उन्होंने 26 जुलाई 1956 ईस्वी को स्वेज नहर का राष्ट्रीयकरण कर दिया , जिसका निर्माण फर्डिनेंड डि लेसेप्स (फ्रांस) ने 1869 में किया था । अमेरिका और यूरोपीय शक्तियों को लगा की सोवियत संघ उनके तेल के स्रोत को काटने का षड्यंत्र रच रहा है । ऐसे में 19 अक्टूबर 1956 ईस्वी को पहले इजराइल और बाद में ब्रिटेन और फ्रांस ने  मिस्र के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया । इजराइल ने मिस्र के गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप पर कब्जा कर लिया । पूरी दुनिया के विरोध के अमेरिका पीछे हट गया । रूस के प्रयासों  से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के दखल के कारण अंततः इसराइल को पीछे हटना पड़ा ।


तृतीय अरब-इजरायल युद्ध :-

इस समय इराक और सीरिया में साम्यवाद समर्थक बाथ पार्टी का शासन था । ये अरब स्वतंत्रता एवं एकता के समर्थक थे । साथ में फियादीन हमलों के भी समर्थक थे । चूंकि रूस की मदद से आधुनिकीकृत हो चुके मिस्र को भी लगता था कि वह इजराइल को पराजित कर देगा ।

जून 1967 में पश्चिम एशिया की सभी प्रमुख शक्तियां मिस्र , सीरिया , जॉर्डन , लेबनान , इराक , सऊदी अरब तथा अल्जीरिया की सेना इजराइल की सीमा पर खड़ी थी । ऐसे में इजराइल ने 5 जून को अचानक मिस्र पर हमला कर दिया और उसकी संपूर्ण वायुसेना को जमीन पर ही नष्ट कर दिया । इजराइल ने मिस्र के गाजा पट्टी व सिनाई प्रायद्वीप तथा जॉर्डन के वेस्ट बैंक एवं सीरिया के गोलन हाइट्स पर कब्जा कर लिया । 10 जून तक अरबों ने संयुक्त राष्ट्र में संघर्ष विराम के प्रस्ताव को रखा , जिसे इजराइल ने स्वीकार कर लिया । किंतु उसने अधिकृत क्षेत्र वापस करने से इनकार कर दिया क्योंकि भविष्य में यह बफर स्टेट का काम कर सकते थे ।


योम किप्पूर का युद्ध :-

युद्ध में पराजय के बाद यासिर अराफात के नेतृत्व में इस क्षेत्र में फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (पी एल ओ) का स्थापना हुआ तथा इसने अरब राज्यों पर इजराइल पर हमला करने का दबाव बनाना शुरू कर दिया । 1972 में म्यूनिख ओलंपिक में ब्लैक सितंबर नामक संगठन ने 11 इजराइली खिलाड़ियों की हत्या कर दी । 6 अक्टूबर 1973 को योम किप्पूर त्यौहार के दिन मिस्र और सीरिया ने इजराइल पर हमला कर दिया । इजराइल ने इन्हें पराजित करते हुए स्वेज नहर पार कर लिया । अंत में अमेरिकी मध्यस्थता के कारण जिनेवा वार्ता में इजराइल ने अपनी सेना स्वेज नहर से हटा ली ।


शांति प्रक्रिया की शुरुआत :-

युद्ध में पराजय के बाद मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात ने भी मान लिया कि वार्ता से ही शांति संभव है । अतः 17 सितंबर 1979 में वाशिंगटन डीसी के निकट कैंप डेविड में अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की मध्यथता में वार्ता शुरू हुई और मार्च 17 मार्च 1979 शांति-संधि पर हस्ताक्षर किए गए । संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा फिलीस्तीन मुक्ति संगठन को पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया ।


हमास की स्थापना :-

1980 के दशक के शुरुआत से ही इजराइल द्वारा यरूशलम क्षेत्र में यहूदियों को बसाना शुरू कर दिया गया जिससे फिलिस्तीनी विरोध के तहत हमास नामक संगठन की 1987 में स्थापना हुई जिसका अरबी अनुवाद है - 'उत्साह' तथा यह इस्लामी प्रतिरोध आंदोलन का संक्षेप है ।

क्षेत्र में बढ़ते संघर्ष के कारण 1992 ईस्वी में अंतरराष्ट्रीय अपील पर पुनः वार्ता शुरू हुई और 1993 ईस्वी में ओस्लो समझौता हुआ , जिसके तहत इजराइल और फिलिस्तीन ने एक दूसरे को मान्यता प्रदान की । किंतु ईरान और सऊदी अरब समर्थित आतंकवादी संगठन हिजबुल्ला और हमास इजराइल पर हमले करते रहे ।

2000 में कैम्प डेविड में शुरू हुई दूसरी शांति वार्ता में यरूशलम के भावी दर्जे को लेकर असमंजस की स्थिति थी । इजराइल पूरा यरूशलम चाहता था जबकि फिलिस्तीन का कहना था कि अल अक्सा मस्जिद वाला यरूशलम का पूर्वी भाग उसका होना चाहिए । इसके अलावा , 2011 में यूनेस्को ने फिलिस्तीन को अपनी सदस्यता प्रदान की , जबकि 2012 ईस्वी में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने फिलिस्तीन को गैर सदस्य-राज्य का दर्जा दिया । इसकी राजधानी रामल्ला (पूर्वी यरूशलम) है ।


वर्तमान संघर्ष का कारण :-

हाल ही में , पूर्वी यरूशलम से फिलिस्तीनियों को निकालने की धमकी और फिर अल अक्सा मस्जिद के पास प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच टकराव के बाद पूर्ण-युद्ध का खतरा बढ गया है । इस टकराव की बड़ी वजह है , हमास द्वारा इजराइल पर रॉकेट से किया गया हमला । यद्यपि इसराइल ने इसे आयरन डोम (एंटी मिसाइल डिफेंस सिस्टम) से नष्ट कर दिया है । फिर भी , अभी संघर्ष जारी है और इजराइल का मानना है कि हमास की समाप्ति तक जारी रहेगा । अतः संघर्ष की समाप्ति हेतु प्रमुख राजनीतिक कर्ताओं को राष्ट्र-राज्यों के साथ ही सभ्यताओं के बीच भी परस्पर संवाद के लिए ठोस पहल करने की जरूरत है ।


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